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________________ ६७६ ] तिलोय पण्णत्ती [ ७. १३१ उदालसहस्सा नवसयाणि पण्णट्ठि जोयणा भागा। दोणि सया उणणउदी पंचम पहइंदु मंदरपमाणं ॥ १३१ २८९ ४४९६५ ཋ༦༢༢༥「༢༦ ། ४२७ पणदालसहस्सा बेजोयणजुत्ता कलाओ इगिदाल । छट्ठपहट्टिदहिमकरचामीयर सेलविच्चालं ॥ १३२ ४५००२ पणदालसहस्सा जोयणाणि अडतीस दुसयवीसंसा । सत्तमवीद्दिगदं सीदमयूखमेरूण विच्चालं ॥ १३३ | ४५०३८ ४१ ४२७ पणदालसहस्सा चहत्तरिअधिया कलाओ तिष्णिसया । णवणवदी विच्चालं अट्ठमवीही गदिंदुमेरूणं ॥ १३४ ३९९ ४२७ ४५०७४ २२० पेणदालसहस्सा सयमेक्कारसजोयणाणि कलाण सयं । इगिवण्णा विच्चालं णवमपहे चंदमेरूणं ॥ १३५ | | १५१ ४२७ ४५१११ • ४२७ Jain Education International पंचम पथको प्राप्त चन्द्रका मेरु पर्वत से चवालीस हजार नौ सौ पैंसठ योजन और दो सौ नवासी भागप्रमाण अन्तर है ॥ १३१ ॥ ४४९२९१३ + ३६ ७९. छठे पथमें स्थित चन्द्र और सुवर्णशैल (मेरु ) के मध्य में पैंतालीस हजार दो योजन और इकतालीस कलाप्रमाण अन्तर है ॥ १३२ ॥ ४४९६५१३७ + ३६१५७ ३७ = ४४९६५१३७ । ४५००२४२७ । सातवीं गलीको प्राप्त चन्द्र और मेरुके मध्य में पैंतालीस हजार अड़तीस योजन और दो सौ बीस भाग अधिक अन्तर है ॥ १३३ ॥ ४५००२४२७ + ३६५७ ४५०३८१ २७ । आठवीं गलीको प्राप्त चन्द्र और मेरुके बीच में पैंतालीस हजार चौहत्तर योजन और = = तीन सौ निन्यानबे कला अधिक अन्तर है ॥ १३४ ॥ ४५०३८१३७ + ३६५७ ४५०७४१२७ । नौवें पथमें चन्द्र और मेरुके मध्य में पैंतालीस हजार एक सौ ग्यारह योजन और एक सौ इक्यावन कलामात्र अन्तराल है ॥ १३५ ॥ ४५०७४ + ३६१७ = ४५११११ = For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001275
Book TitleTiloy Pannati Part 2
Original Sutra AuthorVrushabhacharya
AuthorA N Upadhye, Hiralal Jain
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1956
Total Pages642
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Geography
File Size12 MB
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