SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 278
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ -७. १३० सत्तमा महाधियारो . [६७५ पढमपहादो चंदा बाहिरमग्गस्स गमणकालम्मि । वीहिं पडि मेलिज्ज विच्चालं बिंबसंजुत्तं ॥ १२७ चउदालसहस्सा अडसयाणि छप्पण्णजोयणा अधिया। उणसीदिजुदसदंसा बिदियद्धगदेंदमेरुविच्चाल॥ चउदालसहस्सा अडसयाणि बाणउदि जोयणा भागा। अडवण्णुत्तरतिसया तदियद्धगदेंदुमंदरपमाणं । १२९ ४४८९२ | ३५० चउदालसइस्सा णवसयाणि उणतीस जोयणा भागा। दसजुत्तसदं विच्चं चउत्थपहगदहिमंसुमेरूणं ॥१३० __ चन्द्रोंके प्रथम वीथीसे द्वितीयादि बाह्य वीथियोंकी ओर जाते समय प्रत्येक वीथीके प्रति बिम्बसंयुक्त अन्तरालको मिलाना चाहिये ॥ १२७ ॥ प्रत्येक वीथीका अन्तर ३५२१४ + ३९२ ( = ५६ बिम्बविस्तार) = ३५६१७ = ३६ ४ ३७ बिम्बसंयुक्त अन्तराल प्रमाण । द्वितीय अध्व अर्थात् गलीको प्राप्त हुए चन्द्रमाका मेरु पर्वतसे चवालीस हजार आठ सौ छप्पन योजन और एक योजनके चार सौ सत्ताईस भागोंमेंसे एक सौ उन्यासी भागप्रमाण अन्तर है ॥ १२८ ॥ प्रथम वीथी और मेरुका अन्तर ४४८२० + ३६१३९ = ४४८५६ १५९ मेरु और द्वितीय वीथीके मध्यका अन्तर । ततीय गलीको प्राप्त हुए चन्द्र और मेरुपर्वतके बीचमें चवालीस हजार आठ सौ बानबै योजन और तीन सौ अट्ठावन भाग अधिक अन्तरप्रमाण है ।। १२९ ॥ ४४८५६१२९ + ३६१२९ = ४४८९२४३४ । चतुर्थ पथको प्राप्त हुए चन्द्रमा और मेरुके मध्य चवालीस हजार नौ सौ उनतीस योजन और एक सौ दश भागमात्र अधिक अन्तर है ॥ १३०॥ ४४८९२३५८ + ३६१५१ = १४९२९१३० Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001275
Book TitleTiloy Pannati Part 2
Original Sutra AuthorVrushabhacharya
AuthorA N Upadhye, Hiralal Jain
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1956
Total Pages642
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Geography
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy