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________________ ६७४ ] तिलोयपण्णत्ती [ ७. १२२ एक्सट्ठीए गुणिदा पंचसया जोयणाणि दसजुत्ता । ते अडदालविमिस्सा धुवरासी णाम चारसहीं ॥ १२२ एक्कत्तीससहस्सा अट्ठावण्णुत्तरं सदं तद य । इगिसट्ठीए भजिदे ध्रुवरासिपमाणमुद्दिष्टं ॥ १२३ ३११५८ ६१ परसेहिं गुणिदं हिमकर बिंबप्पमाणमवणिजं । धुवरासीदो सेसं विचालं सयलवीद्दीणं ॥ १२४ तं चोपवित्तं हुवेदि एक्केक्वीहिविञ्चालं । पणुतीसजोयणाणि अदिरेकं तस्स परिमाणं ॥ १२५ मदिरेकस्स पमाणं चोद्दसमदिरित्तविष्णिसदसा । सत्तावीसब्भद्दिया चत्तारि सया हवे हारो ॥ १२६ २५ | ११७ | पांच सौ दश योजनों को इकसठसे गुणा करनेपर जो संख्या प्राप्त हो उसमें वे अड़तालीस भाग और मिला देनेपर ध्रुवराशि नामक चार महीका विस्तार होता है ॥ १२२ ॥ ३१११०; ३१११० + ४८ = ३११५८ = उदाहरण - ५१० x ६१ = ३११५८ ६ १ ध्रु. रा. चार मही । ३०३१८ ६१ इकतीस हजार एक सौ अट्ठावन में इकसठका भाग देने पर जो लब्ध आगे उतना ध्रुवराशिका प्रमाण कहा गया है ।। १२३ ।। ३११५८ ६ १ 1 = | चन्द्रबिम्ब के प्रमाणको पन्द्रह से गुणा करनेपर जो कुछ प्राप्त हो उसे ध्रुवराशिमेंसे कमकर देने पर शेष सम्पूर्ण गलियों का अन्तरालप्रमाण होता है ॥ १२४ ॥ ३०३१८ कुल वीथी अन्तराल | ६ १ चन्द्रबिम्बका प्रमाण ६ x १५ = Jain Education International ६१ ध्रुवराशि ३११५८ ६ १ इसमें चौदहका भाग देने पर एक एक वीथीके अन्तरालका प्रमाण होता है । यह प्रमाण पैंतीस योजनोंसे अधिक है । इस अधिकताका जो प्रमाण है उसमें दो सौ चौदह अंश और चार सौ सत्ताईस भागहार है, अर्थात् वह प्रमाण एक योजनके चार सौ सत्ताईस भागों में से दो सौ चौदह भाग अधिक है ।। १२५-१२६॥ ८४० ६ १ उदाहरण – समस्त वीथियों का अन्तराल १०३१८, १०६३१ ८ ÷ १४ (= ६६४) ३५१२४ =३५४३४ प्रत्येक वीथीका अन्तराल प्रमाण । For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001275
Book TitleTiloy Pannati Part 2
Original Sutra AuthorVrushabhacharya
AuthorA N Upadhye, Hiralal Jain
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1956
Total Pages642
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Geography
File Size12 MB
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