SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 270
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ -७. ७९] सत्तमो महाधियारो [ ६६७ रायंगणस्स मज्झे वररयणमयाणि दिव्वकूडाणि । तेसु जिणपासादा चेटुंते सूरकंतमया ॥ ७१ एदाण मंदिराणं मयंकपुरकूडभवणसारिच्छं । सम्वं चिय वण्णणयं णिउणेहिं एत्थ वत्तव्वं ॥ ७२ तेसु जिणप्पडिमाओ पुचोदिदवण्णणप्पयाराओ । विविहच्चगदब्वेहिं ताओ पूजंति सव्वसुरा ॥ ७३ एदाणं कूडाणं होंति समंतेण सूरपासादा । ताणं पि वण्णणाओ ससिपासादेहिं सरिसाओ ॥ ७४ तग्णिलयागं मझे दिवायरा दिव्वसिंघपीढेसुं। वरछत्तचमरजुत्ता चेटुंते दिव्वयरतेया॥ ७५ जुदिसुदिपकराओ सूरपहाअच्चिमालिणीभो वि । पत्तेकं चत्तारो दुमणीणं अग्गदेवीभो ॥ ७६ देवीणं परिवारा पत्तेकं च उसहस्सदेवीओ। णियणियपरिवारसमं विकिरियं ताओगेण्हति ॥ ७७ सामाणियतणुरवखा तिप्परिसाओ पहाणयाणीया । अभियोगा किदिबसिया सत्तविहा सूरपरिवारा ॥ ७८ रायंगणवाहिरए परिवाराणं हुवंति पासादा। वररयणभूमिदाणं फुरंततेयाण सव्वाणं ॥ ७९ राजांगणके मध्यमें जो उत्तम रत्नमय दिव्य कूट होते हैं उनमें सूर्यकान्त मणिमय जिनभवन स्थित हैं ॥ ७१ ॥ निपुण पुरुषोंको इन मन्दिरोंका सम्पूर्ण वर्णन चन्द्रपुरोंके कूटोंपर स्थित जिनभवनोंके सदृश यहांपर भी करना चाहिये ॥ ७२ ।।। उनमें जो जिनप्रतिमायें विराजमान हैं उनके वर्णनका प्रकार पूर्वोक्त वर्णनके ही समान है । समस्त देव विविध प्रकारके पूजाद्रव्योंसे उन प्रतिमाओंकी पूजा करते हैं ॥ ७३ ॥ इन कूटोंके चारों तरफ जो सूर्यप्रासाद हैं उनका भी वर्णन चन्द्रप्रासादोंके सदृश __उन भवनोंके मध्यमें उत्तम छत्र-चँवरोंसे संयुक्त और अतिशय दिव्य तेजको धारण करनेवाले सूर्य दिव्य सिंहासनोंपर स्थित होते हैं ॥ ७ ॥ युतिश्रुति, प्रभंकरा, सूर्यप्रभा और अर्चिमालिनी, ये चार प्रत्येक सूर्यकी अनदेवियां होती हैं ॥ ७६ ॥ ___ इनमेंसे प्रत्येक अग्रदेवीकी चार हजार परिवार-देवियां होती हैं । वे अपने अपने परिवारके समान अर्थात् चार हजार रूपोंकी विक्रिया ग्रहण करती हैं ॥ ७७ ॥ सामानिक, तनुरक्ष, तीनों पारिषद, प्रकीर्णक, अनीक, आभियोग्य और किल्विषिका, इस प्रकार सूर्योके सात प्रकार परिवार देव होते हैं ॥ ७८ ॥ राजांगणके बाहिर उत्तम रत्नोंसे विभूषित और प्रकाशमान तेजको धारण केरनवाले समस्त परिवार-देवोंके प्रासाद होते हैं ॥ ७९ ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001275
Book TitleTiloy Pannati Part 2
Original Sutra AuthorVrushabhacharya
AuthorA N Upadhye, Hiralal Jain
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1956
Total Pages642
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Geography
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy