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________________ (१) त्रिलोकप्रज्ञप्तिकी प्रस्तावना , मिलता जुलता है। डॉ. किरफेलने अपनी डाइ कासमोग्राफी डेर इंडेर (बान, लीपजिग १९२०) में जो सामग्री उपस्थित की है उसका ति. प. से सूक्ष्म मिलान करनेकी आवश्यकता है। __ प्रासंगिक विषयोंमें मंगलके विषयकी चर्चा परम्परागत है । इसकी तुलना विशेषावश्यक भाष्य (जिनभद्रकृत दो भागोंमें गुजराती अनुवादसहित, सूरत, संवत् १९८०-८३), धवला टीका तथा पञ्चास्तिकायकी जयसेनकृत टीका (वम्बई १९१५) से करने योग्य है। अठारह श्रेणियोंकी गणना तथा महाराज आदि पदवियोंकी परिभाषा ( १, ४३ आदि ) द्वारा हमें प्राचीन भारतके राजानुक्रम एवं वैभवका कुछ परिचय प्राप्त होता है । परमाणु आदि पुद्गलमापों, अंगुल आदि आकाशमापों और व्यवहार पल्य आदि कालमापोंसे हमें तत्कालीन ज्ञानको सुव्यवस्थित करनेके प्रयत्नोंकी स्पष्ट सूचना मिलती है । लोकके मापके लिये इन सबका उपयोग भी किया गया है । ये विषय धवला व जयधवला टीकाओंमें भी वर्णित हैं। ति. प. के चतुर्थ महाधिकारमें सबसे अधिक रोचक प्रकरण शलाकापुरुषोंके वर्णनका है । इन महापुरुषोंके चरित्र जिनसेनकृत हरिवंशपुराण, जिनसेन और गुणभद्रकृत संस्कृत महापुराण, शीलाचार्यकृत प्राकृत महापुरुषचरित, पुष्पदन्तकृत अपभ्रंश तिसहि-महापुरिसगुणालंकार, हेमचन्द्रकृत संस्कृत त्रिषष्ठि-शलाका-पुरुष-चरित, चामुण्डरायकृत कन्नड त्रिषष्ठि-लक्षण-महापुराण, तथा अज्ञातकर्ता तामिल श्रीपुराण आदि ग्रंथों में विस्तारसे वर्णित पाये जाते हैं । इन चरित्रोंपर और भी अनेक ग्रंथ रचे गये हैं जिनमें कहीं सभी और कहीं कुछ या किसी एक ही महापुरुषका चरित्र वर्णन किया गया है। जैन साहित्यिक परम्परामें यह अधिकांश विवरण चिर कालसे चला आता है, और योग्य कवियोंने उसमेंसे अपनी इच्छानुसार पौराणिक या काव्यात्मक रचनाएं तैयार की हैं। ति. प. के समान ही इस विषयका विवरण समवायांग ( सूत्र १५६ आदि पृ. १३९ आदि, बम्बई संस्क. रण अभयदेव टीका सहित ) तथा विशेषावश्यक भाष्य ( आगमोदय समिति सं. गुजराती अनुवाद सहित सूरत, संवत् १९८०, भाग १ परिशिष्ट पृ. ५४५ आदि ) में भी पाया जाता है । तीर्थकरोंके चरित्रमें बहुतसी धार्मिक व वर्णनात्मक चर्चाएं भी आई हैं । जैसे- समवसरणरचना, . ऋद्धियां, चक्रवर्तीकी विजययात्रा इत्यादि जो पश्चात् कालीन लेखकोंके लिये आदर्श सिद्ध हुई। उल्लेखकी सरलताके लिये इनमेंके अनेक विवरण इस ग्रंथके परिशिष्टोंमें तालिका रूपमें दे दिये गये हैं । विविध ग्रंथोंके विवरणोंकी तुलना कर उनमें भेद तथा वर्णनविस्तारकी बातोंपर ध्यान दिये जानेकी आवश्यकता है। ___महावीर स्वामीके पश्चातकी अन्वयपरम्परा ( पृ. ३३८ आदि ) जैन धार्मिक व साहित्यिक इतिहास ही नहीं किन्तु भारतके इतिहासकी दृष्टि से भी महत्त्वपूर्ण है, क्योंकि उसमें राजाओं, राजवंशों एवं उनकी कालगणनाका भी उल्लेख प्राप्त होता है। महावीरनिर्वाणसे छेकर शकराज तकका काल अनेक विकल्पोंके रूपमें दिया गया है जिससे ज्ञात होता है कि Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001275
Book TitleTiloy Pannati Part 2
Original Sutra AuthorVrushabhacharya
AuthorA N Upadhye, Hiralal Jain
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1956
Total Pages642
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Geography
File Size12 MB
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