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-७. ६३] सत्तमो महाधियारो
[६६५ सत्तटप्पहुदीभो भूमीमो भूसिदाओ कूडेहिं । विप्फुरिदरयणकिरणावलीओ भवणेसु रेहति ॥ ५६ तम्मंदिरमझेसु चंदा सिंहासणासमारूढा । पत्तेक्कं चंदाणं चत्तारो अग्गमहिसीओ ॥ ५७ चंदाभसुसीमाओ पहंकरी आच्चिमालिणी ताणं । पत्तेक परिवारा चत्तारिसहस्सदेवीओ ॥ ५८ णियणियपरिवारसमं विक्किरियं दरिसियंति देवीभो। चंदाणं परिवारा अट्टावियप्पा य पत्तेक्कं ॥ ५९ पडिइंदा सामागियतणुरक्खा तह हवंति तिप्परिसा । सत्ताणीयपइण्णयअभियोगा किविसा देवा ॥ ६. सयलिंदाण पडिंदा एक्केक्का होति ते वि आइच्चा । सामाणियतणुरक्खप्पहुदी संखेजपरिमाणा ॥ ६१ रायंगणबाहिरए परिवाराणं हवंति पासादा । विविवररयणरइदा विचित्तविण्णासभूदीहिं ॥ ६२ सोलससहस्समेत्ता अभिजोगसुरा हवंति पत्तेकं । चंदाग पुरतलाई विकिरियासाविणो णिच्चं ॥ ६३
। १६०००।
___ भवनों में कूटोंसे विभूषित और प्रकाशमान रत्न-किरण-पंक्तिसे संयुक्त सात आठ आदि भूमियां शोभायमान होती हैं ॥ ५६ ॥
__ इन मन्दिरोंके बीचमें चन्द्र सिंहासनोंपर विराजमान रहते हैं। उनमेंसे प्रत्येक चन्द्रके चार अग्रमहिषियां ( पट्ट देवियां ) होती हैं ॥ ५७ ॥
चन्द्राभा, सुसीमा, प्रभंकरा और अर्चिमालिनी, ये उन अग्रदेवियों के नाम हैं। इनमेंसे प्रत्येककी चार हजार प्रमाण परिवार देवियां होती हैं ॥ ५८ ॥
अग्रदेवियां अपनी अपनी परिवार देवियों के समान अर्थात् चार हजार रूपों प्रमाण विक्रिया दिखलाती हैं । प्रतीन्द्र, सामानिक, तनुरक्ष, तीनों पारिषद, सात अनीक, प्रकीर्णक, आभियोग्य और किल्विष, इस प्रकार प्रत्येक चन्द्रके परिवार देव आठ प्रकारके होते हैं ॥ ५९-६०॥
सब इन्द्रोंके एक एक प्रतीन्द्र होते हैं । वे ( प्रतीन्द्र ) सूर्य ही हैं । सामामिक और तनुरक्ष प्रभृति देव संख्यात प्रमाण होते हैं ॥ ६१ ॥
राजांगणके बाहिर विविध प्रकारके उत्तम रत्नोंसे रचित और विचित्र विन्यासरूप विभूतिसे सहित परिवारदेवोंके प्रासाद होते हैं ॥ ६२ ॥
प्रत्येक इन्द्रके सोलह हजारप्रमाण आभियोग्य देव होते हैं जो नित्य ही विक्रिया धारण करते हुए चन्द्रोंके पुरतलोंको वहन करते हैं ॥ ६३ ॥ १६०००।
१द ब महंकरा. TP. 84
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