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६४८] तिलोयपण्णत्ती
[ ६. ५०सोलसभोहिदाणं किंगरपहुशीण होति पत्ते । गणिका महल्लियामी दुवे दुवे स्ववत्तीभो । ५० महुरा महुरालामा सुस्सरमिदुभासिणीओ णामहि । पुरिसपियपुरिसकंता सोमाभो पुरिसदसिणिया ॥ ५॥ भोगाभोगवदीभो भुजगा भुजगप्पिया य णामेणं । विमला सुघोसणामा भणिदिदा सुस्लरक्खा य ॥ ५२ तह य सुभद्दा महामो मालिणी पम्ममालिणीभो वि । सम्बसिरिसबसेणा रुद्दावइ रुइणामा य ॥ ५३ भूता य भूदकता महबाहू भूदरत्तणामा य । अंबा य कला णामा रससुलसा तह सुंदरिसणया ॥ ५४ किंगरदेवा सम्वे पियंगुसामेहि देहवणेहिं । उब्भासते कंचणसारिच्छेहिं पि किंपुरुसा ॥ ५५ कालस्सामलवण्णा महोरया जच्च कंचणसवण्णा | गंधब्बा जक्खा तह कालस्सामा विराजति ॥ ५६ . सुद्धस्सामा रक्खसदेवा भूदा वि कालसामलया। सव्वे पिसाचदेवा काजलहंगालकसणतणू ॥ ५७ किंणरपहुवी बेंतरदेवा सच्चे वि सुंदरा होति । सुभगा विलासजुत्ता सालंकारा महातेजा ॥ ५८
एवं णामा सम्मत्ता ।
किनर आदि सोलह व्यन्तरेन्द्रों से प्रत्येकके दो दो रूपवती गणिकामहत्तरी होती हैं ॥ ५० ॥
मधुरा, मधुरालापा, सुस्वरा, मृदुभाषिणी, पुरुषकान्ता, सौम्या, पुरुषदर्शिनी, भोगा, भोगवती, भुजगा, भुजगप्रिया, विमला, सुघोषा, अनिन्दिता, सुस्वरा, सुभद्रा, भद्रा, मालिनी, पद्मालिनी, सर्वश्री, सर्वसेना, रुद्रा, रुद्रवती, भूता, भूतकान्ता, महाबाहु, भूतरक्ता, अम्बा, कला, रसा, सुरसा और सुदर्शनिका, ये उन गणिका महत्तरियोंके नाम हैं ॥ ५१-५४ ॥
सब किन्नर देव प्रियङ्गुके सदृश देहवर्णसे और किम्पुरुष देव सुवर्णके सदृश देहवर्णसे शोभायमान होते हैं ॥ ५५ ॥
महोरग देव काल-श्यामल वर्णवाले, गन्धर्व शुद्ध सुवर्णके सदृश, तथा यक्षदेव काल-श्यामल वर्णसे युक्त होकर शोभायमान होते हैं ॥ ५६ ॥
राक्षस देव शुद्ध श्यामवर्ण, भूत कालश्यामल और समस्त पिशाच देव कज्जल व इंगाल अर्थात् कोयलेके समान कृष्ण शरीरवाले होते हैं ॥ ॥ ५७ ॥
___ किन्नर आदि सब ही व्यन्तर देव सुन्दर, सुभग, विलासके संयुक्त, अलंकारोंसे सहित, और महान् तेजके धारक होते हैं ॥ ५८ ॥
इस प्रकार नामोंका कथन समाप्त हुआ ।
१द ब महश्चियाओ. ९ दब देसिणिया. ३६ ब जंम.
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