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________________ पंचमो महाधियारो -५. ३१८ ] [ ६३१ वच्चदि रूऊणपलिदोवमस्स असंखेजदिभागेण गुणिदबादरपुढविकाइयाणिग्वत्तिपजत्तयस्स उक्करसोगाहणं पुणो तप्पा उग्गभसंखेज्जपदेसपरिहीणं तदुवरि वड्ढिदो त्ति । तावे बादरणिगोदणिव्वत्तिपज्जत्तयस्स जहणणे - गाहा दीसह । तदो पदेसुत्तरकमेण अटूहं मज्झिमोगाहणवियष्पं गच्छदि तदणंतरोगाहणं आवलियाए भसंखेज्जदिभागेण खंडिदेगखंडं तदुवरिं वडिदो त्ति । तावे बादरणिगोदणिग्वत्तिअपजत्तयस्स उक्कस्सोगाहणा दीसह । तदो पदेसुत्तरकमेण सतहं मज्झिमोगाहणवियप्पं वञ्चदि तदनंतरोगाहणं भावलियाए असंखेज्जदिभागेण खंडिय तत्थेगखंडं तद्दुवरि वड्ढिदो त्ति । ता बादरणिगोदणिव्वत्तिपज्जत्तयस्स उक्करले - गाहणा दीसइ । तदो पदेसुत्तरकमेण छण्डं मज्झिमोगाहणवियप्पं वच्चदि तप्पा उग्ग असंखेज्जपदेसं वड्ढिदो सि । ता बादरणिगोदपदिदिभिव्वत्तिअपजत्तयस्स जहण्णोगाहणं दीसह । तदो पदेसुत्तरकमेण सत्तण्डं मज्झिमोगाहणवियपं वच्चदि तप्पा उग्गअसंखेजपदेसं वड्ढिदो ति । ता बादरणिगोदपदिट्ठिदलद्धिअपज्जत्तयस्स उक्करसोगाहणा दीसइ । तदो पदेसुत्तरकमेण छन्दं मज्झिमोगाहणवियप्पं वञ्चदि बादरणिगोदणिव्यत्तिपज्जत उक्कस्सोगाहणं रूऊणपलिदोवमस्स असंखेज्जदिभागेण गुणिय पुणेो तप्पा उग्गसंखेजपदेसेणूणं तदुवरि वडिदो त्ति । ता बादरणिगोदपदिट्ठिदणिव्वत्तिपज्जन्त्तयस्स जहण्णोगाहणा दीसह । जब तक एक कम पल्योपमके असंख्यातवें भागसे गुणित बादर पृथिवीकायिक निर्वृत्तिपर्याप्तकी उत्कृष्ट अवगाहना उसके योग्य असंख्यात प्रदेशोंसे हीन होकर इसके ऊपर वृद्धिको प्राप्त नहीं हो चुकती । तब बादर निगोद निर्वृत्तिपर्याप्तककी जघन्य अवगाहना दिखती है । पश्चात् प्रदेशोत्तरक्रमसे आठ जीवोंकी मध्यम अवगाहनाका विकल्प चलता है । जब तदनंतर अवगाहना आवली के असंख्यातवें भागसे खण्डित एक भागमात्र उसके ऊपर वृद्धिको प्राप्त हो चुके तब बादर निगोद निर्वृत्यपर्याप्तककी उत्कृष्ट अवगाहना दिखती है । पश्चात् प्रदेशोत्तर क्रम से सात जीवोंकी मध्यम अवगाहनाका विकल्प तब तक चालू रहता है जब तक तदनन्तर अवगाहना आवलीके असंख्यातवें भागसे खण्डित कर उसमें से एक भागप्रमाण इसके ऊपर वृद्धिको प्राप्त न हो चुके । तत्र बादर निगोद निर्वृत्तिपर्याप्तकी उत्कृष्ट अवगाहना दिखती है । पश्चात् प्रदेशोत्तर - क्रमसे छह जीवोंकी मध्यम अवगाहनाका विकल्प उसके योग्य असंख्यात प्रदेशोंकी वृद्धि होने तक चालू रहता है । तत्र बादरनिगोदप्रतिष्ठित निर्वृत्त्यपर्याप्तकी जघन्य अवगाहना दिखती है । तत्पश्चात् प्रदेशोत्तरक्रमसे सात जीवोंकी मध्यम अवगाहनाका विकल्प उसके योग्य असंख्यात प्रदेशोंकी वृद्धि होने तक चालू रहता है । तब बादरनिगोदप्रतिष्ठित लब्ध्यपर्याप्तककी उत्कृष्ट अवगाहना दिखती है । पश्चात् प्रदेशोत्तरक्रमसे छह जीवोंकी मध्यम अवगाहनाका विकल्प तब तक चालू रहता है जब तक बादरनिगोद निर्वृत्तिपर्याप्तकी उत्कृष्ट अवगाहना एक कम पल्योपमके असंख्यातवें भागसे गुणित होकर पुनः उसके योग्य असंख्यात प्रदेशोंसे रहित इसके ऊपर वृद्धिको प्राप्त नहीं होचुकती । तब बादर निगोदप्रतिष्ठित निर्वृत्तिपर्याप्तकी जघन्य Jain Education International For Private & Personal Use Only १० www.jainelibrary.org
SR No.001275
Book TitleTiloy Pannati Part 2
Original Sutra AuthorVrushabhacharya
AuthorA N Upadhye, Hiralal Jain
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1956
Total Pages642
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Geography
File Size12 MB
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