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________________ ६३०] तिलोयपण्णत्ती . [५. ३१८अपज्जत्तयस्स उक्कस्सोगाहणं दीसइ । तदो पदेसुत्तरकमेण अट्टहं मज्झिमोगाहणवियप्पं [गच्छदि रूऊणपलिदोवमस्स असंखेजदिभागेण गुणिदआउकाइयणिव्वत्तिपजत्तयस्स उक्कस्सोगाहणं पुणो तप्पाउग्गअसंखेजपदेसपरिहीणं तदुवरि वडिदो सि । ताधे बादरपुढविकाइयणिवत्तिपजत्तयस्स जहण्णोगाहणा दीसह । तदो पदेसुत्सरकमेण णवण्हं मन्झिमोगाहणवियप्पं] वच्चदि तदणंतरोगाइणं आवलियाए असंखेजविभागेण खंडिय तत्थेगखंड तदुवरि वडिदो त्ति । ताधे बादरपुढविशिव्यत्ति-[भपजत्तयस्स उक्कस्सोगाहणं दीसइ । तदो पदेसुत्तरकमेण अट्टण्हं मज्झिमोगाहणवियप्पं वच्चदि तदणंतरोगाहणा आवलियाए भसंखेज्जदिभागण खंडिदेगखंडं तदुवरि वडिदो त्ति । ताधे बादरपुढविकाइयणिव्वत्ति-] पज्जत्तयस्स उक्कस्सोनाहणं दीसइ । तदो पदेसुत्तरकमेण सत्तण्हं मज्झिमोगाहणवियप्पं वच्चदि तप्पाउग्गअसंखेजपदेसं वडिदो त्ति । ताधे बादरणिगोदणिव्वत्तिअपजत्तयस्स जहण्णोगाहणा दीसइ । तदो पदेसुत्तरकमेण अटण्हं मज्झिमोगाहणवियपं वच्चदि तप्पाउग्गअसंखेजपदेसं वढिदो त्ति । ताधे १० बादरणिगोदलद्धिअपजत्तयस्स उक्कस्सोगाहणं दीसइ । तदो पदेसुत्तरकमेण सत्तण्हं मझिमोगाहणवियप्पं तब बादर पृथिवीकायिक लब्ध्यपर्याप्तकी उत्कृष्ट अवगाहना दिखती है । तत्पश्चात् प्रदेशोत्तरक्रमसे आठ जीवोंकी मध्यम अवगाहनाका विकल्प [ तब तक चलता रहता है जब तक बादर जलकायिक निर्वृत्तिपर्याप्तकी उत्कृष्ट अवगाहनाको एक कंप पल्योपमके असंख्यातवें भागसे गुणा करके पुनः उसके योग्य असंख्यात प्रदेशोंसे रहित उसके ऊपर वृद्धि नहीं हो चुकती । तब बादर पृथिवीकायिक निवृत्तिपर्याप्तकी जघन्य अवगाहना दिखती है । पश्चात् प्रदेशोत्तरक्रमसे नौ जीवोंकी मध्यम अवगाहनाका विकल्प ] तब तक चलता है जब तक तदनन्तर अवगाहना आवलीके असंख्यातवें भागसे खण्डित कर एक भागप्रमाण उसके ऊपर वृद्धिको प्राप्त न हो चुके । तब बादर पृथिवीकायिक निर्वृत्ति-[अपर्याप्तकी उत्कृष्ट अवगाहना दिखती है। तब प्रदेशोत्तरक्रमसे • आठ जीवोंकी मध्यम अवगाहनाका विकल्प तब तक चलता है जब तक तदनन्तर अवगाहना आवलीके असंख्यातवें भागसे खण्डित करके उसमें से एक खण्डप्रमाण उसके ऊपर वृद्धिको प्राप्त नहीं होजाती । तब बादर पृथिवीकायिक निर्वृत्ति-]पर्याप्तकी उत्कृष्ट अवगाहना दिखती है। पश्चात् प्रदेशोतरक्रमसे सात जीयोंकी मध्यम अवगाहनाका विकल्प उसके योग्य असंख्यात प्रदेशोंकी वृद्धि होने तक चलता रहता है । तब बादर निगोद निवृत्त्यपर्याप्तकी जघन्य अवगाहना दिखती है । तत्पश्चात् प्रदेशोत्तरक्रमसे आठ जीवोंकी मध्यम अवगाहनाका विकल्प उसके योग्य असंख्यात प्रदेशोंकी वृद्धि होने तक चलता रहता है । तब बादर निगोद लब्ध्यपर्याप्तककी उत्कृष्ट अवगाहना दिखती है। तत्पश्चात् प्रदेशोत्तरक्रमसे सात जीवोंकी मध्यम अवगाहनाका विकल्प तब तक चालू रहता है Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001275
Book TitleTiloy Pannati Part 2
Original Sutra AuthorVrushabhacharya
AuthorA N Upadhye, Hiralal Jain
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1956
Total Pages642
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Geography
File Size12 MB
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