SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 232
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ -५. ३१८) पंचमो महाधियारो [६२९ गाहणवियप्पं गच्छदि तप्पाउग्गमसंखेज्जपदेसं वड्डिदो त्ति | ताधे बादरआउलद्धिअपज्जत्तयस्स' उकस्सोगाहणा दीसइ । तदो पदेसुत्तरकमेण णवण्हं मज्झिमोगाहणवियप्पं गच्छदि रूऊणपलिदोवमस्स असंखेज्जदिभागेण गुणिदतेउकाइयणिवत्तिपज्जत्तयस्स उक्कस्सोगाहणं पुणो तप्पाउग्गभसंखेज्जपदेसपरिहीणं तदुवरि वड़िदो त्ति । ताधे बादरआउणिवत्तिपज्जत्तयस्स जहण्णागाहणा दीसइ । तदो पदेसुत्तरकमेण दसण्हं मज्झिमोगाहणवियप्पं वच्चदि तदणंतरोगाहणं आवलियाए असंखेज्जदिभागेण खंडिय तस्थेगखंड ५ तदुवरि वडिदो त्ति । ताधे बादरआउणिव्वत्ति अपज्जत्तयस्स उक्कस्सोगाहणं दीसह । तदो पदेसुत्तरकमेण णवण्हं मज्झिमोगाहणवियप्पं वच्चदि तदणंतरोगाहणा आवलियाए असंखेजदिभागेण खंडिदेगखं तदुवरि वडिदो त्ति । ताधे बादरआउकाइयगिव्वत्तिपज्जत्तयस्स' उक्कस्सोगाहणं दीसइ । तदोवरि स्थि एदस्स ओगाहणवियप्पं । तदो पदेसुत्तरकमेण अट्ठण्हं मजिनमोगाहणवियप्पं वच्चदि तप्पाउग्गमसंखेज्जपदेसं वडिदो त्ति । ताधे बादरपुढविणिन्वत्तिअपज्जत्तयस्स जहण्णोगाहणा दीसह । तदो पदेसुत्सरकमेण .. णवण्हं मज्झिमोगाहणवियप्पं बच्चदि तप्पाउग्गअसंखेजपदेसं बडिदो त्ति । ताधे बादरपुढविकाइयललि योग्य असंख्यात प्रदेशोंकी वृद्धि होने तक चलता रहता है । तब बादर जलकायिक लब्ध्यपर्याप्तककी उत्कृष्ट अवगाहना दिखती है । पश्चात् प्रदेशोत्तरक्रमसे नौ जीवोंकी मध्यम अवगाहनाका विकल्प तब तक चलता है जब तक एक कम पल्योपमके असंख्यातवें भागसे गुणित तेजस्कायिक निवृत्तिपर्याप्तककी उत्कृष्ट अवगाहना पुनः उसके योग्य असंख्यात प्रदेशोंसे हीन इसके ऊपर वृद्धिको प्राप्त नहीं होजाती । तब बादर जल कायिक निर्वत्तिपर्याप्तककी जघन्य अवगाहना दिखती है । पश्चात् प्रदेशोत्तरक्रमसे दश जीवोंकी मध्यम अवगाहनाका विकल्प तब तक चलता है तक जब तदनन्तर अवगाहना आवलीके असंख्यातवें भागसे खण्डित करके उसमेंसे एक खण्ड प्रमाण इसके ऊपर वृद्धिको प्राप्त नहीं होजाती। तब बादर जलकायिक निवत्यपर्याप्तकी उत्कृष्ट अवगाहना दिखती है । पश्चात् प्रदेशोत्तरक्रमसे नौ जीवोंकी मध्यम अवगाहनाका विकल्प तब तक चलता है जब तक तदनन्तर अवगाहना आवलीके असंख्यातवें भागसे खण्डित एक भागप्रमाण इसके ऊपर नहीं बढ़ जाती । तब बादर जलकायिक निर्वत्तिपर्याप्तकी उत्कृष्ट अवमाहना दिखती है। इसके आगे उसकी अवगाहनाके विकल्प नहीं हैं । पश्चात् प्रदेशोत्तरक्रमसे आठ जीवोंकी मध्यम अवगाहनाका विकल्प उसके योग्य असंख्यात प्रदेशोंकी वृद्धि होने तक चलता रहता है । तब बादर पृथिवीकायिक निर्वृत्त्यपर्याप्तकी जघन्य अवगाहना दिखती है । पश्चात् प्रदेशोत्तर क्रमसे नौ जीवोंकी मध्यम अवगाहनाका विकल्प इसके योग्य असंख्यात प्रदेशोंकी वृद्धि होने तक चलता रहता है । १ दब लद्धिपज्जत्तयस्स. २६ व णिव्वतिअपज्जत्यस्स. ३ द ब वडिदि. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001275
Book TitleTiloy Pannati Part 2
Original Sutra AuthorVrushabhacharya
AuthorA N Upadhye, Hiralal Jain
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1956
Total Pages642
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Geography
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy