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________________ १२८ तिलोवपणत्ती तदो पदेसुत्तरकमेण एक्कारसहं मज्झिमोगाहणवियप्पं वरचदि तप्पाडग्गअसंखेज्जदिपदेस वडिदो' त्ति । ताधे बादरतेउकाइयलद्धिमपज्जत्तयस्स उक्कस्सोगाहणा दीसइ । तदो पदेसुत्तरकमेण दसह मनिममोगाहणवियप्पं वच्चदि बादरवाउकाइयणिन्वत्तिपज्जत्तयस्स उक्कस्सोगाहणं रूऊणपलिदोवमस्स असंखेअदिभागेण गुणिय पुणो तप्पाउग्गअसंखेज्जपदेसपरिहीणं तदुवरि वड्दिो त्ति । ताधे बादरतेउणिवत्तिपजत्तयस्स जहण्णोगाहणा दीसह । तदो पदेसुत्तरकमेण एक्कारसण्हं मज्झिमोगाहणवियप्पं वञ्चदि ५ तदणंतरोगाहणा आवलियाए असंखेज्जदिभागेण खंडिय तत्थेगखंडं तदुवरि वडिदो त्ति | ताधे बादरतेउणिग्वत्तिभपज्जत्तयस्स उक्कस्सोगाहणं दीसइ । तदो पदेसुत्तरकमेण दसहं मज्झिमोगाहणवियप्पं वञ्चदि तदणंतरोगाहणं आवलियाए असंखेज्जदिभागेण खंडिय तदेगभागं तदुवरि वडिदो त्ति । ताधे बादरतेउकाइयणिव्वत्तिपज्जत्तयस्स उक्कस्सोगाहाणा दीसइ । [ तदुवरि तस्स ओगाहणवियप्पा णस्थि, उक्कस्सोगाहणं पत्तत्तादो।] तदो पदेसुत्तरकमेण णवण्हं मज्झिमोगाहणवियप्पं गच्छदि तप्पाउग्गअसंखेजपदेसवाडिदो .. तिताधे बादरआउणिवत्तिअपज्जत्तयस्स जहण्णोगाहणं दीसह । तदो पदेसुत्तरकमेण दसण्हं मज्झिमो. जीवोंकी मध्यम अवगाहनाका विकल्प उसके योग्य असंख्यात प्रदेशोंकी वृद्धि होने तक चलता रहता है । तब बादर तेजस्कायिक लब्ध्यपर्याप्तककी उत्कृष्ट अवगाहना दिखती है। पश्चात् प्रदेशोत्तरक्रमसे दश जीवोंकी मध्यम अवगाहनाका विकल्प तब तक चलता रहता है जब तक बादर वायुकायिक निवृत्तिपर्याप्तककी उत्कृष्ट अवगाहनाको एक कम पल्योपमके असंख्यातवें भागसे गुणा करके पुनः इसके योग्य असंख्यात प्रदेशोंसे रहित उसके ऊपर वृद्धि होती है । तब बादर तेजस्कायिक निर्वृत्तिपर्याप्तकी जघन्य अवगाहना दिखती है । पश्चात् प्रदेशोत्तरक्रमसे ग्यारह जीवोंकी मध्यम अवगाहनाका विकल्प तब तक चलता है जब तक तदनन्तर अवगाहनाको आवलीके असंख्यातवें भागसे खण्डित करके उसमेंसे एक भाग प्रमाण उसके ऊपर वृद्धि न होजावे। तब बादर तेजस्कायिक निवृत्त्यपर्याप्तककी उत्कृष्ट अवगाहना दिखती है । पश्चात् प्रदेशोत्तरक्रमसे दश जीवोंकी मध्यम अवगाहनाका विकल्प तब तक चलता रहता है जब तक तदनन्तर अवगाहनाको आवलीके असंख्यातवें भागसे खण्डित करके उसमेंसे एक भाग प्रमाण उसके ऊपर वृद्धि होचुकती है। तब बादर तेजस्कायिक निर्वृत्तिपर्याप्तककी उत्कृष्ट अवगाहना दिखती है । [ इसके आगे उसकी अवगाहनाके विकल्प नहीं हैं, क्योंकि वह उत्कृष्ट अवगाहनाको प्राप्त कर चुका है ।] तत्पश्चात् प्रदेशोत्तरक्रमसे नौ जीवोंकी मध्यम अवगाहनाका विकल्प उसके योग्य असंख्यात प्रदेशोंकी वृद्धि होने तक चलता रहता है । इस समय बादर जलकायिक निवृत्यपर्याप्तककी जघन्य अवगाहना दिखती है। तत्पश्चात् प्रदेशोत्तरक्रमसे दश जीवोंकी मध्यम अवगाहनाका विकल्प उसके १द व वडिदि. २द ब तधे. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001275
Book TitleTiloy Pannati Part 2
Original Sutra AuthorVrushabhacharya
AuthorA N Upadhye, Hiralal Jain
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1956
Total Pages642
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Geography
File Size12 MB
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