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________________ -५. ३१८ ] पंचमो महाधियारो [ ६२७ दीसइ । तदो पदेसुत्तरकमेण बारसहं जीवाणं मज्झिमोगाहणवियप्पं वडूदि तप्पा उग्गसंखेज्जपदेसं वड्ढिदो त्ति । ताधे बादरवाउकाइयलद्धिअपजत्तयस्स उक्करसोगाहणं दीसइ । तदो पदेसुत्तर कमेण एक्कारसं मज्झिमोगाहणचियं वञ्चदि । तं केत्तियमेत्तेण इदि उत्ते सुहुमपुढ विकाइयणिव्वत्तिपजत्तयस्स उक्करसोगाहणा रूऊणपलिदोवमसंखेज्जदिभागेण गुणिदं पुणो तप्पाउग्गअसंखेज्जपदेसपरिहीणं तदुवरि दो ति । ता बादरवाउका इयणिव्यत्तिपजत्तयस्स जहणिया ओगाहणा दीसह । तदो पदेसुतरकमेण बारसं मज्झिमोगाहणवियप्पं वच्चदि तदनंतरोगाहणं आवलियाए असंखेज्जदिभागेण खांडेयमेत तदुरि वडिदो त्ति । [ताधे बादरवाङकाइयणिव्वत्तिअपज्जत्तयस्स उक्करसोगाहणा दीसइ । तदो पदेसुतरकमेण एक्कार सण्दं मज्झिमोगाहणवियप्पं वच्चदि तदनंतरोगाहणं आवलियाए असंखेज्जदिभागेण खंडिदेगखंड दुवरि वडिदो ति ] | ताधे' बादरवाउकाइयपज्जत्तयस्स उक्कस्सोगाहणं दीसह । तदुवरि तस्स भोगाहणविप्पा णत्थि, सक्कस्सं पत्तत्तादो । तदो पदेसुत्तरकमेण दसहं जीवाण मज्झिमोगाहणवियप्पं बच्चदि १० तप्पाउग्गअसंखेज्जपदेसं वड्ढिदो ति । ताधे बादरतेउकाइयणिन्वत्तिभपज्जत्तयस्स जहण्णोगाद्दणा दीसह । दिखती है । पश्चात् प्रदेशोत्तर क्रमसे बारह जीवोंकी मध्यम अवगाहनाका विकल्प उसके योग्य असंख्यात प्रदेशोंकी वृद्धि होने तक बढ़ता रहता है । उस समय बादर वायुकायिक लब्ध्यपर्याप्तककी उत्कृष्ट अवगाहना दिखती है । पश्चात् प्रदेशोत्तरक्रमसे ग्यारह जीवोंकी मध्यम अवगाहनाका विकल्प चलता रहता है । वह कितने मात्रसे, इस प्रकार कहनेपर उत्तर देते हैं कि सूक्ष्म पृथिवीकायिक निवृत्तिपर्याप्तककी उत्कृष्ट अवगाहनाके एक कम पल्योपमके असंख्यातवें भागसे गुणित पुनः उसके योग्य असंख्यात प्रदेशोंसे हीन उसके ऊपर वृद्धि होने तक । उस समय बाद वायुकायिक निर्वृत्तिपर्याप्तककी जघन्य अवगाहना दिखती है । पश्चात् प्रदेशोत्तरक्रमसे बारह जीवोंकी मध्यम अवगाहनाका विकल्प तब तक चलता है जब तक कि तदनन्तर अवगाहना आवलीके असंख्यातवें भागसे खण्डितमात्र इसके ऊपर वृद्धिको प्राप्त न होचुके । [ तत्र बादर वायुकायिक निर्वृत्त्यपर्याप्तकी उत्कृष्ट अवगाहना दिखती है । पश्चात् प्रदेशोत्तरक्रमसे ग्यारह जीवोंकी मध्यम अवगाहनाका विकल्प तब तक चालू रहता है जब तक तदनन्तर अवगाहना आवलीके असंख्यातवें भागसे खण्डित करनेपर एक भाग प्रमाण उसके ऊपर वृद्धिको प्राप्त होती है । ] तब बादर वायुकायिक निर्वृत्तिपर्याप्तकी उत्कृष्ट अवगाहना दिखती है । इसके आगे उसकी अवगाहना के विकल्प नहीं हैं, क्योंकि वह सर्वोत्कृष्ट अवगाहनाको प्राप्त कर चुका है । तत्पश्चात् प्रदेशोत्तरक्रमसे दश जीवोंकी मध्यम अवगाहनाका विकल्प उसके योग्य असंख्यात प्रदेशोंकी वृद्धि होने तक चलता रहता है । तब बादर तेजस्कायिक निर्वृत्त्यपर्याप्तककी जघन्य अवगाहना दिखती है । तत्पश्चात् प्रदेशेोत्तरक्रमसे ग्यारह १ द व तवे. Jain Education International For Private & Personal Use Only ५ www.jainelibrary.org
SR No.001275
Book TitleTiloy Pannati Part 2
Original Sutra AuthorVrushabhacharya
AuthorA N Upadhye, Hiralal Jain
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1956
Total Pages642
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Geography
File Size12 MB
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