________________
६२६] तिलोयपण्णत्ती
[५. ३१८तदो' पहुदि पदेसुत्तरकमेण तेरसण्हं मज्झिमोगाहणवियप्पं वच्चदि तप्पाउग्गअसंखेजपदेसं वडिदो ति । ताधे सुहुमपुढविलद्धिअपजत्तयस्स उक्कस्सोगाहणा दीसइ । तदो पदेसुत्तरकमेण बारसह जीवाणं मज्झिमोगाहणवियप्पं बडुदि। केत्तियमेत्तेण ! सुहुमआउकाइयणिव्वत्तिपजत्तयस्स उक्कस्सोगाहणं रूऊणावलियाए असंखेजदिभागेण गुणिदमेत्तं पुणो तप्पाउग्गअसंखेजपदेसेणूणं तदुवरि वडिदो त्ति । ताधे सुहुमपुढविकाइयणिव्वत्तिपजत्तयस्त जहण्णोगाहणा दीसइ । तदो पदेसुत्तरकोण तेरसण्हं जीवाणं मज्झिमो. ५ गाहणवियप्पं वञ्चदि तदणंतरोगाहणं आवलियाए असंखजदिभागेण खंडिदेयखंडमेत्तं तदुवरि वडिदो त्ति| ताधे सुहुमपुढविणिवत्तिअपजत्तयस्स उक्कस्सोगाहणं दीसइ । तदो' पदेसुत्तरकमेण बारसण्हं जीवाणं मज्झिमोगाहणवियप्पं वञ्चदि तदणंतरोगाहणा आवलियाए असंखेजदिभागेण खंडिय तत्थेगभागं तदुवरि वड़िदो त्ति । तदो सुहुमपुढविकाइयणिव्वत्तिपज्जत्तयस्स उक्कस्सोगाहणं दीसइ । तदोवरि सुहुमपुढविकाइयस्स ओगाहणवियप्पं गत्थि । तदो पदेसुत्तरकमेण एक्कारसण्हं जीवाणं मज्झिमोगाहणवियप्पं १० बच्चदि तप्पाउग्गअसंखेजपदे ते । ताधे बादरवाउकाइयणिव्वत्तियपज्जत्तयस्स जहण्णोगाहणं
क्रमसे तेरह जीवोंकी मध्यम अवगाहनाका विकल्प उसके योग्य असंख्यात प्रदेशोंकी वृद्धि होने तक चालू रहता है । तब सूक्ष्म पृथिवीकायिक लब्ध्यपर्याप्तककी उत्कृष्ट अवगाहना दिखती है। पश्चात् प्रदेशोत्तरक्रमसे बारह जीवोंकी मध्यम अवगाहनाका विकल्प बढ़ता रहता है । कितने मात्रसे ? सूक्ष्म जलकायिक निर्वृत्तिपर्याप्त की उत्कृष्ट अवगाहनाके एक कम आवलीके असंख्यातवें भागसे गुणितमात्र पुनः उसके योग्य असंख्यात प्रदेशोंसे कम इसके ऊपर वृद्धि होने तक । उस समय सूक्ष्म पृथिवीकायिक निर्वृत्तिपर्याप्तकी जघन्य अवगाहना दिखती है । पश्चात् प्रदेशोत्तरक्रमसे तेरह जीवोंकी मध्यम अवगाहनाका विकल्प तब तक चलता हरता है जब तक तदनंतर अवगाहना आवलीके असंख्यातवें भागसे खण्डित एक भागमात्र उसके ऊपर वृद्धिको प्राप्त न हो चुके । तब सूक्ष्म पृथिवीकायिक निवृत्त्यपर्याप्तकी उत्कृष्ट अवगाहना दिखती है । पश्चात् प्रदेशोत्तरक्रमसे बारह जीवोंकी मध्यम अवगाहनाका विकल्प तदनन्तर अवगाहनाको आवलीके असंख्यातवें भागसे खण्डित करके उसमेंसे एक भागप्रमाण उसके ऊपर वृद्धि होने तक चलता रहता है। तत्पश्चात् सूक्ष्म पृथिवीकायिक निर्वृत्तिपर्याप्तकी उत्कृष्ट अवगाहना दिखती है। इसके आगे सूक्ष्म पृथिवीकायिककी अवगाहनाका विकल्प नहीं है । पश्चात् प्रदेशोत्तरक्रमसे ग्यारह जीवोंकी मध्यम अवगाहनाका विकल्प उसके योग्य असंख्यात प्रदेशोंकी वृद्धि होने तक चलता रहता है। तब बादर वायुकायिक निवृत्त्यपर्याप्तकी जघन्य अवगाहना
१द ब तदा.
२द ब तदा.
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org