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________________ ६३२] तिलोयपण्णत्ती [५.३१८तदो पदेसुत्तरकमेण सत्तण्हं मशिमोगाहणवियप्पं वच्चदि तदणंतरोगाहणं आवलियाए असंखेजदिभागेण खंडिदेगखंडं तदुवरि वडिदो त्ति । ताधे बादरणिगोदपदिद्विदणिवत्तिभपजत्तयस्स उक्कस्सोगाहणा दीसइ । तदो पदेसुत्तरकमेण छपणं मझिमोगाहणवियप्पं वच्चदि तदणंतरोगाहणमावलियाए असंखजदिभागेण खंडिय तत्थेगखंडं तदुवरि बाडिदो त्ति । ताधे बादरणिगोदपदिहिदणिन्वत्तिपज्जत्तयस्स उक्कस्सो. गाहणा दीसदि । तदो पदेसुत्तरकमेण पंचण्हं जीवाणं मम्मिमोगाहणवि पप्पं वच्चदि तप्पाउग्गअसंखेजपदेस वडिदो ति । ताधे बादरवणप्फदिकाइयपत्तेयसरीरणिवत्तिअपजत्तयस्स' जहणोगाहणा दीसइ । तदो पदेसुत्तरकमेण छण्हं मझिमोगाहणवियप्पं वञ्चदि तप्पाउग्गअसंखेजपदेसं वडिदो त्ति । ताधे बादरवणप्फदिकाइयपत्तेयसरीरलद्धिअपज्जयत्तयस्स उक्कस्सोगाहणा दीसइ । तदो पदेसुत्तरकमेण पंवण्हं जीवाणं मन्त्रिमोगाहणत्रियप्पं वञ्चदि तप्पाउग्गअसंखेज्जपदेसं वडिदो त्ति । ताधे बादरवणप्फदिकाइयपत्तेयसरीर ५ अवगाहना दिखती है । पश्चात् प्रदेशोत्तरक्रमसे सात जीवोंकी मध्यम अवगाहनाका विकल्प तब तक चलता रहता है जब तक तदनन्तर अवगाहना आवलीके असंख्यातवें भागसे खण्डित करनेपर एक भागप्रमाण उसके ऊपर वृद्धिको प्राप्त नहीं हो चुकती । तब बादरनिगोदप्रतिष्ठित निवृत्त्यपर्याप्तककी उत्कृष्ट अवगाहना दिखती है । पश्चात् प्रदेशोत्तरक्रमसे छह जीवोंकी मध्यम अवगाहनाका विकल्प तब तक चालू रहता है जब तक तदनंतर अवगाहना आवलीके असंख्यातवें भागसे खण्डित कर उसमें से एक भागप्रमाण उसके ऊपर वृद्धिको प्राप्त नहीं होजाती । तब बादरनिगोदप्रतिष्ठित निर्वृत्तिपर्याप्तककी उत्कृष्ट अवगाहना दिखती है। पश्चात् प्रदेशोत्तरक्रमसे पांच जीवोंकी मध्यम अवगाहनाका विकल्प उसके योग्य असंख्यात प्रदेशोंकी वृद्धि होने तक चालू रहता है । तब बादर वनस्पतिकायिक प्रत्येकशरीर निवृत्त्यपर्याप्तककी जघन्य अवगाहना दिखती है । पश्चात् प्रदेशोत्तरक्रमसे छह जीवोंकी मध्यम अवगाहनाका विकल्प उसके योग्य असंख्यात प्रदेशोंकी वृद्धि होने तक चालू रहता है । तब बादर वनस्पतिकायिक प्रत्येकशरीर लब्ध्यपर्याप्तककी उत्कृष्ट अवगाहना दिखती है । पश्चात् प्रदेशोत्तरक्रमसे पांच जीवोंकी मध्यम अवगाहनाका विकल्प उसके योग्य असंख्यात प्रदेशोंकी वृद्धि होने तक चालू रहता है । तब बादर वनस्पतिकायिक प्रत्येकशरीर निवृत्तिपर्याप्तककी जघन्य अवगाहना दिखती है । पश्चात् प्रदेशोत्तरक्रमसे छह जीवोंकी मध्यम अवगाहनाका विकल्प उसके योग्य असंख्यात प्रदेशोंकी वृद्धि होने तक चालू रहता है । तब बादर वनस्पतिकायिक प्रत्येकशरीर निर्वृत्तिपर्याप्तककी उत्कृष्ट अवगाहना दिखती १द व पज्जत्तयस्स. २द बतादे. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001275
Book TitleTiloy Pannati Part 2
Original Sutra AuthorVrushabhacharya
AuthorA N Upadhye, Hiralal Jain
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1956
Total Pages642
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Geography
File Size12 MB
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