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________________ -५. २७०] पंचमो महाधियारो सहस्सजोयणेहि अब्भहियं होदि । सस्स ठवणा -१ धण जोयणाणि ७५०००। तस्सव आयाम णवसेढि ठविभट्रावीसेहिं भजिदमेतं, पुणो दोषिणलक्ख-पंचवीलसहस्सजोयणेहि परिहीण होदि। तस्स उवणा सहिं ९ रिण जोयणाणि २२५०००। अहिंदवरसमुहस्स खेत्तफलं रज्जूवे कदी वरूवेहिं गुणिय बेसदछप्पण्णरूवेहिं भजिदमेतं, · पुणो एक्कलक्ख-चालीससहस्स-छस्सय-पंचवीसजोयणेहिं गुणिदमेत्त. रज्जए चउभाग, पुणो एक्कसहस्स-तिण्णिसय-एक्कहतरिकोडीओ णवलक्ख-सत्ततीससहस्स-पंचसयजोयणेहिं परिहीणं होदि । । रिण रज्जू १ | १ ४ ० ६ २५ रिण जोयणाणि १३७१०९३७५०० । सयंभूरमणणिण्णगरमणस्स खेत्तफलं रज्जूवे कदी णवरूवेहिं गुणिय सोलसरूवेहि भजिदमेतं, पुणो एक्कलक्खबारससहस्स-पंचसयजोयणेहिं [ गुणिदरज्जूए] अब्भहियं, पुणो एक्कसहस्स-छस्सय-सत्तासीदिकोडि-पण्णासलक्खजोयणेहिं परिहीणं होदि। तस्स ठवणा = . . धण रज्जू १।११२५००रिण जोयणाणि १६८७५०००००००। भदिरेयस्स पमाणमाणयणहेहूँ इमं गाहासुतंवारुणिवरादिउवरिमइच्छियरयणायरस्स रुंदत्तं । सत्तावीस लक्खे गुणिदे अहियस्स परिमाणं ॥ २७ ॥ जो लब्ध आवे उतना और पचत्तर हजार योजन अधिक है। उसकी स्थापना- ज. + यो. ७५००० । इसका आयाम नौ जगश्रेणियोंको रखकर अट्ठाईसका भाग देनेपर जो लब्ध आवे उसमेंसे दो लाख पच्चीस हजार योजन कम है। उसकी स्थापना- ज. २८ - यो. २२५००० । __अहीन्द्रवरसमुद्रका क्षेत्रफल राजुके वर्गको नौसे गुणा. कर दो सौ छप्पनका भाग देनेपर जो लब्ध आवे उसमेंसे एक लाख चालीस हजार छह सौ पच्चीस योजनसे गुणित राजुका चतुर्थ भाग और एक हजार तीन सौ इकत्तर करोड़ नौ लाख सैंतीस हजार पांच सौ योजन कम है। रा.२ ४९ २५६ - (रा. . . यो. १४०६२५ यो.) - १३७१०९३७५००। स्वयंभूरमणसमुद्रका क्षेत्रफल राजुके वर्गको नौसे गुणा करके सोलहका भाग देनेपर जो लब्ध आवे उतना होकर एक लाख बारह हजार पांचसौ योजनोंसे गुणित राजुसे अधिक और एक हजार छह सौ सतासी करोड़ पचास लाख योजन कम है। उसकी स्थापना इस प्रकार है रा.२ x ९ १६ + (राजु ४ यो. ११२५००)- यो. १६८७५००००००। आतिरेकके प्रमाणको लानेके लिये गाथासूत्र वारुणीवरसमुद्रको आदि लेकर उपरिम इच्छित समुद्रके विस्तारको सत्ताईस लाखसे गुणा करनेपर अधिकताका प्रमाण आता है ॥ २७० ॥ उदाहरण- वारुणीवरसमुद्रका विस्तार यो. १२८ ला.। १२८ ला. x २७ ला. = ३४५६०००००००००० अतिरिक्त क्षे. फ. । TP. 74 १९ व पचासय. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001275
Book TitleTiloy Pannati Part 2
Original Sutra AuthorVrushabhacharya
AuthorA N Upadhye, Hiralal Jain
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1956
Total Pages642
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Geography
File Size12 MB
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