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________________ ५८६] तिलोयपण्णत्ती [५. २७० - पण्णारसपक्खे अप्पाबहुगं वत्तइस्सामो। तं जहा-लवणसमुदस्स खेत्तफलादो कालोदगसमुहस्स खेत्तफलं अट्ठावीसगुणं । लषणसमुहसहिदकालोदसमुहस्स खेत्तफलादो पोक्खरवरसमुहस्स खेत्तफलं सत्तारसगुणं होऊण चउवण्णसहस्सकोडिजोयणेहिं अब्भहियं होदि। पमाणं ५४००००००००००। लवणकालोदगसहिदपोक्खरवरसमुदस्स खेत्तफलादो वारुणिवरणीररालिस्स खेत्तफलं पण्णारसगुणं होदूण पगदाललक्खचउवण्णसहस्सकोडिजोयणेहिं अब्भहियं होइ ४५५४०००००००००० । एवं वारुणिवरणीररासिप्पहुदि हेट्ठिमणीररासीणं खेत्तफलसमूदादो उवरिमणिण्णगणाहस्प खेत्तफलं पत्तेयं पण्णार पगुणं पक्खेवभूदपणदाललक्ख-चउवण्णसहस्सकोडीओ चउग्गुणं होऊण पुणो एक्कलक्ख-बासद्विसहस्सकोडिजोयणेहिं अब्भहिय होई १६२०००००००००० । एवं णेदव्वं जाब सयंभूरमणसमुद्दो त्ति । तत्थ अंतिमवियप्पं बत्तइस्रामोसयंभूरमणणिण्णगाणाहस्साधो हेट्रिमसब्याण णीररामीणं खेत्तफलपमाणं रज्जूवे वग्गं तिगुणिय असीदिरूवेहिं भजिदमेतं, पुणो एक्कसहस्स-छसय-सत्तासीदिकोडिपण्णासलक्खजोयणेहिं अब्भहियं होदि, पुणो बावण्ण- १० सहस्स-पंचसय जोयणेहिं गुणिदरज्जूहि परिहीणं होदि । तस्स ठवणा = ३ । धण जोयणाणि १६८७५०००००० रिण रज्जू ५२ ५०० । सयंभूरमणसमुदस्स खेत्तफलं तापमाणं रज्जूवे वग्गं णवरूवेहिं गुणिय सोलसरूवेहि भजिदमेत्तं, पुणो एकलक्ख बारससहस्स-पंचसयजोयणेहिं ४९।८० । पन्द्रहवें पक्षमें अल्पबहुत्वको कहते हैं । वह इस प्रकार है- लवणसमुदके क्षेत्रफलसे कालोदकसमुद्रका क्षेत्रफल अट्ठाईसगुणा है । लवणसमुद्र सहित कालोदकसमुद्रके क्षेत्रफलसे पुष्करवरसमुद्रका क्षेत्रफल सत्तरहगुणा होकर चौवन हजार करोड़ योजन अधिक है । प्रमाण ५४००००००००००। लवण व कालोदक सहित पुष्करवरसमुद्रके क्षेत्रफलसे वारुणीवरसमुद्रका क्षेत्रफल पन्द्रहगुणा होकर पैंतालीस लाख चौवन हजार करोड़ योजन अधिक है ४५५४०००००००००० । इस प्रकार वारुणीवरसमुद्रसे लेकर अधस्तन समुद्रोंके क्षेत्रफलसमूहसे उपरिम समुद्रका क्षेत्रफल प्रत्येक पन्द्रहगुणा होनेके अतिरिक्त प्रक्षेपभूत पैंतालीस लाख चौवन हजार करोड़ योजनोंसे चौगुणा होकर एक लाख बासठ हजार करोड़ योजन अधिक है १६२०००००००००० । इस प्रकार यह क्रम स्वयंभूरमणसमुद्र पर्यन्त जानना चाहिये । इसमेंसे अन्तिम विकल्पको कहते हैं- स्वयंभूरमणसमुद्रके नीचे अधस्तन सब समुद्रोंके क्षेत्रफलका प्रमाण राजुके वर्गको तीनसे गुणा करके अस्सीका भाग देनेपर जो लब्ध आवे उतनेमात्र होकर एक हजार छहसौ सतासी करोड़ पचास लाख योजन अधिक और बावन हजार पांच सौ योजनोंसे गुणित राजुसे हीन है । उसकी स्थापना- रा.२ ४३८०+ यो. १६८७५००००००-- ( रा. x यो. ५२५०० )। स्वयंभूरमणसमुद्रका जो क्षेत्रफल है उसका प्रमाण राजुके वर्गको नौसे गुणा करके सोलहका भाग देनेपर जो लब्ध आवे उतना होनेके अतिरिक्त एक लाख बारह हजार १द ब पण्णारस . Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001275
Book TitleTiloy Pannati Part 2
Original Sutra AuthorVrushabhacharya
AuthorA N Upadhye, Hiralal Jain
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1956
Total Pages642
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Geography
File Size12 MB
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