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________________ -५. २६६] पंचमी महाधियारो अट्ठावीसरूवेहि भजिदजगसेढी पुणो पंचत्तरिसहस्सजोयणेहिं अब्भहियं होदि । मायाम अट्टवीसरूवेहि भजिद [णव] जगसेढी पुणो दोण्णिलक्खपंचवीससहस्सजोयणेहिं परिहाणं होदि । तस्स ठवणा - धण ७५००० । आयाम रिण २२५००० । खेत्तफलं रज्जूवे कदी णवरूवेहिं गुणिय सोलसरूवेहिं भजिदमेत्तं पुणो रज्जू ठविय एक्कल रख-बारससहस्स-पंवसयजोयणेहि गुणिदचूिणकदिमेत्तेहिं अब्भहियं होदि । तं किंचूणपमाणं पण्णासलक्ख-सत्तासीदिकोडिअभहिय छस्सय-एक्कसहस्सकोडिजोयणमेतं होदि । तस्स उवणा ।।९।।धण छ। ११६५०० | रिण १६८७५०००००० । एवं दीवोदधीणं विक्खंभायामखेत्तफलं च परूवणहेदुमिमं गाहासुतंलक्खविहीण रुंदं णवहि गुणं इच्छियस्स दीहत्तं । तं चेव य रुंदगुणं खेत्तफलं होदि वलयाणं' ॥२६६ ॥ देटिमदीवस्स वा रयणायरस वा खेत्तफलादो उवरिमदीवस्स वा तरंगिणीणाहस्स वा खेत्तफलस्स ५ स्वयंभूरमणसमुद्रका विस्तार अट्ठाईससे भाजित जगश्रेणीमात्र और पचत्तर हजार योजन अधिक है, तथा आयाम अट्ठाईससे भाजित नौ जगश्रेणी से दो लाख पच्चीस हजार योजन कम है । उसकी स्थापना इस प्रकार है विस्तार -- ज. ’ २८ + यो. ७५००० = १ राजु + ७५००० यो.। आयाम -- ज. ९ २८ - यो. २२५००० = राजु : - २२५००० यो. स्वयंभूरमणसमुद्रका क्षेत्रफल राजुके वर्गको नौसे गुणा करके प्राप्त राशिमें सोलहका भाग देनेपर जो लब्ध आवे उतना और राजुको स्थापित करके एक लाख बारह हजार पांच सौ योजनोंसे गुणित किंचून कृतिमात्रसे अधिक है । इस किंचूनका प्रमाण एक हजार छह सौ सतासी करोड़ पचास लाख योजनमात्र है। उसकी स्थापना इस प्रकार हैरा.२ x ९ १६ + (रा. १ ४ यो. ११२५००)- योजन १६८७५००००००।। इस प्रकार द्वीप-समुद्रोंके विस्तार, आयाम और क्षेत्रफलके निरूपण के हेतु यह गाथासूत्र है-- एक लाख कम विस्तारको नौसे गुणा करनेपर इच्छित द्वीप या समुद्रकी लंबाई होती है । इस लंबाईको विस्तारसे गुणा करनेपर गोलाकार क्षेत्रोंका क्षेत्रफल होता है ॥ २६६ ॥ उदाहरण- धा. विस्तार यो. ४०००००-१०००००= ३ लाख । ३०००००४९= . २७००००० आयाम । २७०००००४४०००००=१०८०००००००००० क्षेत्रफल । अवस्तन द्वीप अथवा समुद्रके क्षेत्रफलसे उपरिम द्वीप अथवा समुद्र के क्षेत्रफलकी १द ब ठवणा ४९ । १६. २ बलवाणं. Jain Education International · For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001275
Book TitleTiloy Pannati Part 2
Original Sutra AuthorVrushabhacharya
AuthorA N Upadhye, Hiralal Jain
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1956
Total Pages642
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Geography
File Size12 MB
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