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________________ ५८०] तिलोयपणत्ती [५.२६५विक्खभादो विक्खंभं दुगुणं आयामादो आयाम दुगुणं गवलक्खेहिं अब्भहियं होऊण गच्छइ जाव सयंभूरमणसमहो त्ति । लवणसमुहस्स खेत्तफलादो धादइसंडस्स खेत्तफलं छग्गुणं, धादईसंडदीवस्स खेत्तफलादो कालोदगसमुदस्स खेत्तफलं चउग्गुणं बाहत्तरिसहस्सकोडिजोयणेहिं अब्भहियं होदि । खेत्तफलं ७२०००. ०००००००। एवं हटिमदीवस्स वा णीरराखिस्स वा खेत्तफलादो तदणंतरोवरिमदीवस्स वा रयणायरस्त वा खेत्तफलं चउगुणं पक्खेत्रभूदवाहत्तरिसहस्सकोडिजोयणाणि दुगुणदुगुणं होऊण गच्छइ नाव सयंभूरमणो त्ति । तत्थ अंतिमवियप्पं वत्तइस्लामो- सयंभूरमणदीवस्स विक्खंभं छप्पण्णरूवेहि भजिदजगसेढी पुणो सत्तत्तीससहस्सपंचसयजोयणेहिं अब्भहियं होइ । तस्स ठवणा -५६ । धण जोयणाणि ३७५०० । आयाम पुण छप्पण्णरूवेहिं हिंदणवजगसेढीओ पुणो पंचलक्खवासविसहस्सपंचसयजोयणेहिं परिहीणं होदि । तस्स ठवणा - रिण जोयणाणि ५६२५०० । पुणो विक्खंभायामं परोप्परगुणिदे खेत्तफलं रज्जूवे कदि णवस्वेहिं गुणिय चउसहिख्वेहि भजिदमेत्तं । किंचूर्ण पमाणं रज्जू ठविय अट्ठावीपसहस्सएक्कसयपंचवीसरूवेहिं गुणिद- १० मेत्तं पुणो पण्णाससहस्स-सत्तत्तीसलक्ख-णवकोडिअब्भहियदोणिसहस्सएकसयकोडिजोयणमेत्तं होदि। तस्स ठवणा - । ९ रिण - । २८१२५ रिण जोयणाणि २१०९३७५०००० सयभरमणसमुदस्स विक्खंभ आयामसे आयाम दुगुणा और नौ लाख अधिक होकर स्वयंभूरमणसमुद्र तक चला गया है । लवणसमुद्रके क्षेत्रफलसे धातकीखण्डका क्षेत्रफल छहगुणा और धातकीखण्डद्वीप के क्षेत्रफलसे कालोदकसमुद्रका क्षेत्रफल चौगुणा व बहत्तर हजार करोड़ योजन अधिक है७२०००००००००० । इस प्रकार अधस्तन द्वीप अथवा समुद्रके क्षेत्रफलसे तदनन्तर उपरिम द्वीप अथवा समुद्रका क्षेत्रफल चौगुणा और प्रक्षेपभूत बहत्तर हजार करोड़ योजन स्वयंभरमणसमुद्र तक दुगुणे होते गये हैं । इसमेंसे अन्तिम विकल्पको कहते हैं- स्वयंभरमणद्वीपका विस्तार छप्पनसे भाजित जगश्रेणी मात्र और सैंतीस हजार पांच सौ योजन अधिक है । उसकी स्थापना इस प्रकार है- ज. ५६ + ३७५०० यो. = १ राजु + ३७५०० योजन । स्वयंभरमणद्वीपका आयाम छप्पनसे भाजित नौ जगश्रेणियोंमेंसे पांच लाख बासठ हजार पांच सौ योजन कम है। उसकी स्थापना इस प्रकार है- ज.९ : ५६-५६२५०० यो. = राजु -- ५६२५०० यो. ।। इस विस्तार और आयामको परस्पर गुणित करनेपर स्वयंभूरमणद्वीपका क्षेत्रफल राजुके वर्गको नौसे गुणा करके चौंसठका भाग देनेपर जो लब्ध आवे उससे कुछ कम होता है । इस किंचित् कमका प्रमाण राजुको स्थापित करके अट्ठाईस हजार एक सौ पच्चीससे गुणा करनेपर जो राशि उत्पन्न हो उतना और दो हजार एकसौ नौ करोड़ सैंतीस लाख पचास हजार योजनमात्र है। उसकी स्थापना इस प्रकार है--- रा.२ ४ ९ ६४ - (१ राजु • ४२८१२५ यो. -२१०९३७५०००० यो.) १ब तेत्तीस. २९ ब ठवणा ४ । ९ । ६४. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001275
Book TitleTiloy Pannati Part 2
Original Sutra AuthorVrushabhacharya
AuthorA N Upadhye, Hiralal Jain
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1956
Total Pages642
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Geography
File Size12 MB
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