SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 172
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ -५. २५१] पंचमी महाधियारो इच्छियजलणिहिरुंद तिगुणं दलिदूण तिण्णिलक्खूणं : तिलक्खूणतिगुणवासे सोहिय दलिदम्मि सा हवे वडी॥ चउत्थपक्खे अप्पाबहुगं वत्तइस्सामो- लवणणीररासिस्स एयदिसलंदादो कालोदगसमुहस्स एयदिसरुंदवडी छल्लक्खेशभहियं होइ । लवणसमुद्दसंमिलिदकालोदगसमुद्दादो पोक्खरवरसमुहस्स एयदिसरुंदवडी बावीसलक्खेण अभहियं होदि। एवं हेट्ठिमसायराणं समूहादो तदणंतरोवरिमणीररासिस्स एयदिसरुंदवडी चदुगुणं दोलखेहि रहियं होऊण गच्छइ जाव सयंभूरमणसमुद्दो त्ति । तस्स अंतिमवियप्पं वत्तइस्सामो- सयंभूरमणसमुदस्स हेटिमसयल सायराणं एयदिसरंदसमूहादो सयंभूरमणसमुदस्स एयदिसरुंदवड्डी छरूवेहिं भजिदरज्जू पुणो तिदयहिदं तिण्णिलक्खपुण्णाससहस्सजोयणाणि भव्भहियं होदि४२ धणजोयणाणि ३५०० ० ० । तम्वडीआणयणहेदुमिमं गाहासुतंअडलक्षहीणइच्छियवासं बारसेहिं भजिदलद्धसो । सोधसु तिचरणभागेण सोदवासम्मि तं हवे वड्डी ॥२५१ उन वृद्धिओंको लानेके लिये यह सूत्रगाथा है- इच्छित समुद्रके तिगुणे विस्तारको आधा करके उसमें से तीन लाख कम करदेनेपर जो शेष रहे उसे तीन लाख कम तिगुणे विस्तारमेंसे घटाकर शेषको आधा करनेपर वह वृद्धिप्रमाण आता है ॥ २५० ।। । उदाहरणकालोदसमुद्रसे पुष्करवरसमुदके विस्तारमें हुई वृद्धिका प्रमाण पु. स. वि. यो. ३२ लाख x ३ २-३ लाख = ४५ लाख; ३२ लाख ४३ - ३ लाख = ९३ लाव; ९३ लाख - ४५ लाख + २ = २४००००० यो. वृद्धि । चतुर्थ पक्षमें अल्पबहुत्वको कहते हैं- लवणसमुद्रके एक दिशासम्बन्धी विस्तारको अपेक्षा कालोदकसमुद्रका एक दिशासंबंधी विस्तार छह लाख योजन अधिक है। लवणसमुद्रसम्मिलित कालोदकसमुद्रके एक दिशासम्बन्धी विस्तारकी अपेक्षा पुष्करवरसमुद्रकी एक दिशासम्बन्धी विस्तारवृद्धि बाईस लाख योजन अधिक है । इस प्रकार अधस्तन समुद्रसमूहसे उसके अनंतर स्थित अग्रिम समुद्र के एक दिशासम्बन्धी विस्तारमें दो लाख कम चौगुणी वृद्धि स्वयंभूरमणसमुद्र तक होती गयी है । उसके अन्तिम विकल्पको कहते हैं- स्वयंभूरमणसमुद्रके अधस्तन सम्पूर्ण समुद्रोंके एक दिशासम्बन्धी विस्तारसमूहकी अपेक्षा स्वयंभूरमण समुद्रके एक दिशासम्बन्धी विस्तारमें छह रूपोंसे भाजित एक राजु और तीनसे भाजित तीन लाख पचास हजार योजन अधिक वृद्धि हुई है । राजु । यो. ३५००० ० । इस वृद्धिप्रमाणके लानेके हेतु यह गाथासूत्र है इच्छित समुद्रके विस्तारमेंसे आठ लाख कम करके शेषमें बारहका भाग देनेपर जो लब्ध आवे उसे विस्तारके तीन चतुर्थ भागोंमेंसे घटा देने पर जो अवशिष्ट रहे उतनी विवक्षित समुद्र के विस्तारमें वृद्धि होती है ।। २५१ ।। TP, 72 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001275
Book TitleTiloy Pannati Part 2
Original Sutra AuthorVrushabhacharya
AuthorA N Upadhye, Hiralal Jain
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1956
Total Pages642
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Geography
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy