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________________ ५७० ] तिलोयपण्णत्ती [५.२५२इच्छियवत्रीदो हेहिमसयलसायरागं संबंधिएयदिसलंदसमासाणं आणयणर्ट गाहासुतंसगसगवडिपमाणे दोलखं अवणिदूण अद्धकदे । इच्छियबड्डीदु तदो हेहिमउवहीणसंबंध ॥ २५२ पंचमपक्खे अप्पाबहुगं वत्तइस्सामो- सयलजंबूदीवस्स रुंदादो धादइसंडस्स एयदिसरुंदवडी तियलक्खेणब्भहियं होदि । धादईसंडस्स एयदिसलंदादो पोक्खरवरदीवस्त एयदिसरुंदवड्डी बारसलक्खेण. भहियं होदि । एवं तदणंतरहेटिमदीवादो अणंतरोवरिमदीवस्स वासवड्डी तिगुणं होऊण गच्छइ जाव सयंभूरमणदीओ ति। तस्स अंतिमवियप्पं क्त्तइस्सामो-दुचरिमअहिंदवरदीवादो अंतिमसयंभूरमणदीवस्स वडिपमाणं तियरज्जू' बत्तीसरूवेहि अवहरिदपमाणं पुणो अट्ठावीससहस्सएक्कसयपणुवीसजोयणेहिं ५ अब्भहियं होइ। -३, धणजोयण २८१२५ । तव्वड्डीण आणयणे गाहासुत्त उदाहरण-बारुणीवर समुद्रका विस्तार यो. १२८ लाख; १२८ लाख - ८ लाख : १२=१० लाख; ९६ लाख (विस्तारका )- १० लाख = ८६००००० वृद्धि । ___ इच्छित वृद्धिसे अधस्तन समस्त समुद्रोंसम्बन्धी एक दिशाके विस्तारयोगोंको लानेकेलिये यह गाथा सूत्र है अपनी अपनी वृद्धिके प्रमाणमेंसे दो लाख कम करके शेषको आधा करनेपर इच्छित वृद्धिवाले समुद्रसे पहिलेके समस्त समुद्रोसम्बन्धी विस्तारका प्रमाण आता है ॥ २५२ ।। उदाहरण- वारुणीवर समुद्र की विस्तारवृद्धि ८६ लाख । ८६ लाख - २ लाख + २ = ४२००००० योजन लवणोद, कालोद और पुष्कर समुद्रका सम्मिलित विस्तार । पांचवें पक्षमें अल्पबहुत्वको कहते हैं- सम्पूर्ण जम्बूद्वीपके विस्तारसे घातकीखण्डके एक दिशासम्बन्धी विस्तारमें तीन लाख योजन अधिक वृद्धि हुई है। धातकीखण्डके एक दिशासम्बन्धी विस्तारसे पुष्करवरद्वीपके एक दिशासम्बन्धी विस्तारमें बारह लाख योजन अधिक वृद्धि हुई है । इस प्रकार स्वयंभूरमण द्वीप पर्यन्त अनंतर अधस्तनद्वीपसे उसके आगे स्थित द्वीपके विस्तारमें तिगुणी वृद्धि होती गई है । उसके अन्तिम विकल्पको कहते हैं- द्विचरम अहीन्द्रवरद्वीपसे अन्तिम स्वयंभूरमणद्वीपके विस्तारमें होनेवाली वृद्धिका प्रमाण बत्तीससे भाजित तीन राजु और अट्ठाईस हजार एक सौ पच्चीस योजन अधिक है । राजु ३३ + यो. २८१२५ । १द ब संबंधो. २द व तियरज्जूहिं. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001275
Book TitleTiloy Pannati Part 2
Original Sutra AuthorVrushabhacharya
AuthorA N Upadhye, Hiralal Jain
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1956
Total Pages642
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Geography
File Size12 MB
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