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-५. २२१] पंचमो महाधियारो
[ ५५७ चेटुंति णिरुवमाणा छ ञ्चिय विजयस्स अग्गदेवीओ । ताणं पीढा रम्मा सिंहासणपुवदिब्भाए ॥ २१५ परिवारा देवीओ तिण्णि सहस्सा हुवंति पत्तेक्कं । साहियपलं आऊ णियणियठाणम्मि चेटुंति ॥ २१६ बारस देवसहस्सा बाहिरपरिसाए विजयदेवस्स । णइरिदिदिसाए ताणं पीढाणिं सामिपाढादो ॥ २१७
दस देवसहस्साणिं मज्झिमपरिसाए होति विजयस्स । दक्खिणदिसाविभागे तप्पीढा णाहपीढादो । २१८
अभंतरपरिसाए अट्ट सहस्साणि विजयदेवस्स । अग्गिदिसाए होति हु तप्पीढा णाहपीढादो ॥ २१९
(८०००) सेणामहत्तराणं सत्ताणं होति दिब्वपीढाणिं । सिंहासणपच्छिमदो वरकंचणरयणरइदाई ॥ २२० तणुरक्खा अट्टारससहस्ससंखा हवंति पत्तेकं । ताणं चउसु दिसासु चेटुंते चंदपीढाणिं ॥ २२१
१८०००। १८००० । १८०००। १८०००।
___ मुख्य सिंहासनके पूर्वदिशाभागमें विजयदेवकी अनुपम छहों अनदेवियां स्थित रहती हैं। उनके सिंहासन रमणीय हैं ॥ २१५॥
इनमेंसे प्रत्येक अग्रदेवीकी परिवारदेवियां तीन हजार हैं जिनकी आयु एक पल्यसे अधिक होती है । ये परिवारदेवियां भी अपने अपने स्थानमें स्थित रहती हैं ॥ २१६ ॥
विजयदेवकी बाह्य परिपद्में बारह हजार देव हैं। उनके सिंहासन स्वामीके सिंहासनसे नैऋत्य दिशाभागमें हैं ॥ २१७ ॥ १२००० ।
विजयदेवकी मध्यम परिषद्धे दश हजार देव होते हैं । उनके सिंहासन स्वामीके सिंहासनसे दक्षिणदिशाभागमें स्थित रहते हैं ॥ २१८ ॥ १००००।
विजयदेवकी अभ्यन्तर परिषदें जो आठ हजार देव रहते हैं, उनके सिंहासन स्वामीके सिंहासनसे अग्निदिशामें स्थित रहते हैं ॥ २१९ ॥ ८००० ।
सात सेनामहत्तरोंके उत्तम सुवर्ण एवं रत्नोंसे रचित दिव्य पीठ मुख्य सिंहासनके पश्चिममें होते हैं ॥ २२०॥
विजयदेवके जो अठारह हजारप्रमाण शरीररक्षक देव हैं, उन प्रत्येकके चन्द्रपीठ चारों दिशाओंमें स्थित हैं ।। २२१ ॥
पूर्व १८००० । दक्षिण १८००० । पश्चिम १८००० । उत्तर १८०००।
१ब इंति.
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