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________________ ५५० तिलोयपण्णत्ती [५. १६५तक्कूटभंतरए चसारि हवंति सिद्धकूडाणि । पुन्वसमाण णिसहहिदजिणपुरसरिसजिणणिकदाणि ॥ १६५ दिसविदिसं तम्भाए चउ चउ अट्टाणि सिद्धकूहाणिं । उच्छेदप्पहुदीए णिसहसमा केइ इच्छंति ॥ १६६ लोयविणिच्छयकत्ता रुचकवरहिस्स वण्णणपयारं । अण्णेण सरूवेणं वक्खाणइ तं पयासेमि ॥ १६७ होदि गिरी रुचकवरो रंदो अंजणगिरिंदसमउदओ। बादालसहस्साणि वासो सब्वत्थ दसघणो गाढो ॥ १६८ ... ८४००० । ४२००० । १०००। कूडा णंदावत्तो सत्थियसिरिवच्छवडमाणक्खा । तग्गिरिपुष्वदिसाए सहस्सरुदं तदउच्छेहो ॥ १६९ एदेसु दिग्गजिंदा' देवा णिवसंति एक्कपल्लाऊ । णामेहिं पउमुत्तरसुभद्दणीलंजणगिरीभो ॥ १७० तक्कूडभंतरए वरकूडा चउदिसासु अट्ठा । चेलृति दिव्वरूवा सहस्सरुंदा तदद्धउच्छेहा ॥ १७१ १०००। ५००। । इन कूटोंके अभ्यन्तर भागमें चार सिद्धकूट हैं, जिनपर पहिलेके समान ही निषधपर्वतस्थ जिनभवनोंके सदृश जिनमन्दिर विद्यमान हैं ॥ १६५॥ कोई आचार्य उंचाई आदिकमें निषध पर्वतके समान ऐसे दिशाओंमें चार और विदिशाओंमें चार इस प्रकार आठ सिद्धकूटोंको स्वीकार करते हैं ॥ १६६ ॥ लोकविनिश्चयकर्ता रुचकवर पर्वतके वर्णनप्रकारका अन्यप्रकारसे व्याख्यान करते हैं, उसको यहां दिखलाता हूं ॥ १६७ ॥ रुचकवरपर्वत अंजनगिरिके समान ऊंचा, ब्यालीस हजार योजन विस्तारवाला और सर्वत्र दशके घन (एक हजार ) योजनप्रमाण अवगाहसे सहित है ॥ १६८ ॥ उत्सेध ८४००० । व्यास ४२००० । अवगाह १००० । इस पर्वतकी पूर्वदिशासे लेकर नन्द्यावर्त, स्वस्तिक, श्रीवृक्ष और वर्धमान नामक चार कूट हैं । इन कूटोंका विस्तार एक हजार योजन और उंचाई इससे आधी है ॥ १६९ ॥ इन कूटोंपर एक पल्यप्रमाण आयुके धारक पद्मोत्तर, सुभद्र, नील और अंजनगिरि नामक चार दिग्गजेन्द्र देव निवास करते हैं ॥ १७० ॥ इन कूटोंके अभ्यन्तर भागमें एक हजार योजन विस्तारवाले और इससे आधे ऊंचे चारों दिशाओंमें आठ आठ दिव्य रूपवाले उत्तम कूट स्थित हैं ॥ १७१ ॥ विस्तार १००० । उत्सेध ५००। १९ व पुरजिण. २दय णिसहसमो . ३द दिगर्दिवा, ब दिगादिंदा. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001275
Book TitleTiloy Pannati Part 2
Original Sutra AuthorVrushabhacharya
AuthorA N Upadhye, Hiralal Jain
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1956
Total Pages642
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Geography
File Size12 MB
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