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पंचम महाधियारो
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• पुग्वादिचउदिसासुं चउ चउ कूडाणि होति प्रत्तेक्कं । ताण अंतरभागे एक्केको सिद्धवरकूड़ो || १२१ वज्रं वज्जपद्दक्खं कणयं कणयप्पहं च पुन्वाए । दक्खिणदिसाए रजदं रजदप्पहमुप्पभा महप्पभयं ॥ ११२ अंक अंकपदं मणिकूडं पच्छिमदिसाए मणिपभयं । उत्तरदिसाए रुचकं रुचकाभं हेमवंतमंदरया ॥ १२३ दे सोलस कूडा दणवणवण्णिदाण कूडाणं । उच्छेहादिसमाणा' पासादेहिं विचितेहिं ॥ १२४ एदेसिं कूडेसुं जिणभवणविभूसिदेसु रम्मेसुं । णिवसंति बेंतरसुरा नियणियकूडेहिं समणामा ॥ १२५ एकपलिदोवमाऊ बहुपरिवारा भवंति ते सव्वे । एदाणं णयरीभो विचित्तभवणाभो तेसु कूडेसुं ॥ १२६ चत्तारि सिद्धकूडा चउजिणभवणेहि ते पभासते । णिसह गिरिकूडवण्णिदजिणपुरसमवासपडुदीहिं ॥ १२७ तगिरिवरस्स होंति दिसि विदिसासुं जिणिंदकूडाणिं । पत्तेकं एकैके केई एवं परूवेंति ॥ १२८
पाठान्तरम् ।
पूर्वादिक चार दिशाओंमेंसे प्रत्येकमें चार चार कूट और उनके अभ्यन्तर भाग में एक एक सिद्धवरकूट है ॥ १२१ ॥
उन सोलह कूटोंमेंसे वज्र, वज्रप्रभ, कनक और कनकप्रभ, ये चार पूर्वदिशामें; रजत, रजतप्रभ, सुप्रभ, और महाप्रभ, ये चार दक्षिणदिशामें; अंक, अंकप्रभ, मणिकूट और मणिप्रभ, चार पश्चिमदिशा में; तथा रुचक, रुचकाभ, हिमवान् और मंदर, ये चार कूट उत्तरदिशामें स्थित हैं । १२२ - १२३॥
ये सोलह कूट नन्दनवनमें कहे हुए कूटोंकी उंचाई आदि तथा विचित्र प्रासादोंसे समान हैं ॥ १२४ ॥
जिनभवन से विभूषित इन रमणीय कूटोंपर अपने अपने कूटोंके सदृश नामवाले व्यन्तर देव निवास करते हैं ॥ १२५ ॥
वे सब देव एक पल्योपमप्रमाण आयु और बहुत प्रकारके परिवारसे सहित होते हैं । उपर्युक्त कूटोंपर विचित्र भवनोंसे संयुक्त इन देवोंकी नगरियां हैं ॥ १२६ ॥
वे चार सिद्धकूट निषध पर्वतके सिद्धकूटपर कहे हुए जिनपुरके सदृश विस्तार व उंचाई आदि सहित ऐसे चार जिनभवनों से शोभायमान होते हैं ।। १२७ ॥
इस श्रेष्ठ पर्वतकी दिशा व विदिशाओं में से प्रत्येकमें एक एक जिनेन्द्रकूट है, इस प्रकार भी कोई आचार्य बतलाते हैं ॥ १२८ ॥
४ द ब 'भवणेसु.
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१ द हेमवमं, ब हेमवरमं..
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पाठान्तर ।
२ द व उच्छे होदिस माणा. ३ द व 'विभूसिदासु.
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