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________________ -५.१६] पंचमो महाधियारो [५३५ . भादरअणादरक्खा जंबूदीवस्स अहिवई होति । तह य पभासो पियदसणो य लवणंबुरासिम्मि ॥ ३८ भुंजेदि प्पियणामा दसणणामा य धादईसंडं । कालोदयस्त पहणो कालमहाकालणामा य ॥ ३९ पउमो पुंडरियक्खो दीवं भुजंति पोखरवरक्खं । चखुसुचक्खू पहुणो होंति य मणुसुत्तरगिरिस्स ॥ ४. 'सिरिपहसिरिधरणामा देवा पालंति पोक्खरसमुई। वरुणो वरुणपहक्खो भुंजते चारु वारुणीदीवं ॥ ४१ वाणिवरजलहिपहू णामेणं मज्झमज्झिमा देवा । पंडुरयपुप्फदंता दीवं भुजति खीरवरं ॥ ४२ विमलपहक्खो विमलो खीरवरंवाहिणीसअहिवइणो । सुप्पहघदवरदेवा घदवरदीवस्स अधिणाहा ॥ ४३ उत्तरमहप्पहक्खा देवा रक्खंति घदवरंबुणिहि । कगयकगयाभणामा दीवं पालंति खोदवरं ॥ ४४ पुण्णप्पुण्णपहक्खा देवा रक्खंति खोदवरसिंधुं। गंदीसरम्मि दीवे गंधमहागंधया पहुणो ॥ ४५ गंदीसरवारिणिहिं रक्खंते णंदिणंदिपहुणामा । चंदसुभद्दा देवा भुंजते अरुणवरदीवं ॥ ४६ जम्बूद्वपिके अधिपति आदर और अनादर नामक तथा लवणसमुद्रके प्रभास और प्रियदर्शन नामक दो व्यन्तरदेव हैं ॥ ३८ ॥ प्रिय और दर्शन नामक दो देव धातकीखण्डद्वीपका उपभोग करते हैं । तथा काल और महाकाल नामक दो देव कालोदकसमुद्रके प्रभु हैं ।। ३९ ॥ पद्म और पुण्डरीक नामक दो देव पुष्करवरद्वीपको भोगते हैं ।चक्षु व सुचक्षु नामक दो देव मानुषोत्तर पर्वतके प्रभु हैं ॥ ४० ॥ ___ श्रीप्रभ और श्रीधर नामक दो देव पुष्करसमुद्रका तथा वरुण और वरूणप्रभ नामक दो देव वारुणीवरद्वीपका भलीभांति रक्षण करते हैं ॥ ४१ ॥ मध्य और मध्यम नामक दो देव वारुणीवर समुद्रके प्रभु हैं । पाण्डुर और पुष्पदन्त नामक दो देव क्षीरवरद्वीपकी रक्षा करते हैं ॥ ४२ ॥ विमलप्रभ और विमल नामक दो देव क्षीरवरसमुद्रके तथा सुप्रभ और घृतवर नामक दो देव घृतवरद्वीपके अधिपति हैं ॥ ४३ ॥ उत्तर और महाप्रभ नामक दो देव घृतवरसमुद्रकी तथा कनक और कनकाभ नामक दो देव क्षौद्रवरद्वीपकी रक्षा करते हैं ॥ ४४ ॥ पूर्ण और पूर्णप्रभ नामक दो देव क्षौद्रवरसमुद्रकी रक्षा करते हैं । गंध और महागंध नामक दो देव नन्दीश्वरद्वीपके प्रभु हैं ॥ ४५ ॥ नन्दि और नन्दिप्रभ नामक दो देव नन्दीश्वरसमुद्रकी तथा चन्द्र और सुभद्र नामक दो देव अरुणवरद्वीपकी रक्षा करते हैं ॥ ४६॥ १८ ब गिरिपहु. २द चुंबते. ३द ब पंदरय'. ४ द ब खूरवरं. ५द ब रक्खंतते. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001275
Book TitleTiloy Pannati Part 2
Original Sutra AuthorVrushabhacharya
AuthorA N Upadhye, Hiralal Jain
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1956
Total Pages642
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Geography
File Size12 MB
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