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तिलोयपण्णत्ती
[ ५.४७
अरुणवरवारिरासिं रक्खते अरुणअरुणपहणामा । अरुण भासं दीवं भुजंति सुगंधसव्वगंधसुरा ॥ ४७ सेसाणं दीवाणं वारिणिहीणं च अहिवई देवा । जे केइ ताण णामस्वएसो संपहि पणट्टो ॥ ४८ पढमपवणिददेवा दक्षिणभागम्मि दीवउवहीगं । चरिमुच्चारिददेवा चेट्टंते उत्तरे भाए ॥ ४९ यियिदी उही उवरिमतलसंठिदेसु णयरेसुं । बहुविहपरिवारजुदा कीडंते बहुविणोदेणं ॥ ५० एक्कपलिदोवमाऊ पत्तेक्कं दसघणूणि उत्तुंगा । भुंजते विविहसुहं समचउरस्संगसंठाणा ॥ ५१ जंबूदीवाहिंतो अट्टमभो होदि भुवणविक्खादो । दीसरो ति दीओ नंदीसरजलिहिपरिखित्तो ॥ ५२ एक्कसया सट्ठी कोडीओ जोयणाणि लक्खाणि । चुलसीदी तद्दीवे विक्खंभो चक्कवालेणं ॥ ५३
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पणवण्णाधियछस्सयकोडीओ जोयगागि तेत्तीसा । लक्खाणि तस्स बाहिरसूचीए होदि परिमाणं ॥ ५४
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अरुण और अरुणप्रभ नामक व्यन्तर देव अरुणवरसमुद्रकी तथा सुगंध और सर्वगंध नामक देव अरुणाभासद्वीपकी रक्षा करते हैं ॥ ४७ ॥
शेष द्वीप समुद्रों के जो कोई भी अधिपति देव हैं, उनके नामोंका उपदेश इस समय नष्ट हो गया है ॥ ४८ ॥
इन देवों से पहिले ( युगलों में से ) कहे हुए देव द्वीप - समुद्रोंके दक्षिणभाग में तथा अन्तमें कहे हुए देव उत्तरभागमें स्थित है ॥ ४९ ॥
ये देव अपने अपने द्वीप - समुदोंके उपरिम भागमें स्थित नगरोंमें बहुत प्रकारके परिवार से युक्त होकर बहुत विनोदके साथ क्रीड़ा करते हैं ॥ ५० ॥
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इनमेंसे प्रत्येककी आयु एक पल्योपम व उंचाई दश धनुपप्रमाण है । ये सब समचतुरस्रसंस्थान से युक्त होते हुए विविध प्रकारके सुखको भोगते हैं ॥ ५१ ॥
जम्बूद्वीपसे आठवां द्वीप भुवनविख्यात व नन्दीश्वरसमुद्रसे वेष्टित 'नन्दीश्वर' है ॥ ५२ ॥ उस द्वीपका मण्डलाकार से विस्तार एकसौ तिरेसठ करोड़ चौरासी लाख योजनमात्र ३ ॥ ५३॥
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इस द्वीप की बाह्य सूचीका प्रमाण छहसौ पचवन करोड़ तेतीस लाख योजन है ॥ ५४ ॥
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१ द ब णिहिं च.
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