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________________ (९४) त्रिलोकप्रज्ञाप्तिकी प्रस्तावना है। अतः आश्चर्य नहीं जो किसी सुदूरवर्ती एक दिन वे पुनः सूर्यमण्डलमें लवलीन हो जाय । हमने ऐसे महाकाय सूर्यमण्डलके दर्शन किये जिनकी बराबरीका अन्य कोई भी ज्योतिर्मण्डल आकाश भरमें दिखाई नहीं देता । किन्तु इससे यह नहीं समझना चाहिये कि उन अति लघु दिखाई देनेवाले तारोंमें सूर्यके तुल्य महान् कोई एक भी नहीं हैं । यथार्थतः तो हमें जिन तारोंका दर्शन होता है उनमें सूर्यसे छोटे व सूर्यके बराबरके तो बहुत थोड़े तारे हैं। उनमें अधिकांश तो सूर्यसे भी बहुत विशाल, उससे सैकड़ों, सहस्रों व लाखों गुणे बड़े हैं । किन्तु उनके छोटे दिखाई देनेका कारण यह है कि वे हमसे सूर्यकी अपेक्षा बहुत ही अधिक दूरीपर हैं। तारोंकी दूरी समझने के लिये हमारे संख्यावाची शब्द काम नहीं देते। उसके लिये वैज्ञानिकोंकी दूसरी ही प्रक्रिया है। प्रकाशकी गति प्रति सेकंड १,८६,००० एक लाख छयासी हजार मील, तथा प्रति मिनिट १,११,६०,००० एक करोड़, ग्यारह लाख, साठ हजार मील मापी गई है। इस प्रमाणसे सूर्यका प्रकाश पृथ्वी तक कोई ८-९ मिनटमें आता है । तारे हमसे इतनी दूर हैं कि उनका प्रकाश हमारे समीप वर्षोंमें आ पाता है, और जितने वर्षों में वह आता है उतने ही प्रकाशवर्षकी दूरीपर वह तारा कहा जाता है । सेन्टोरी नामक अति निकटवर्ती तारा हमसे चार प्रकाशवर्षकी दूरी पर है, क्योंकि उसके प्रकाशको हमारे पास तक पहुंचनेमें चार वर्ष लगते हैं । इस प्रकार दश, बीस, पचास एवं सैकड़ों प्रकाशवर्षोंकी दूरीके ही नहीं किन्तु ऐसे ऐसे तारोंका ज्ञान हो चुका है जिनकी दूरी दश लाख प्रकाशवर्षकी मापी गई है तथा जो प्रमाणमें भी हमारी पृथ्वी तो क्या हमारे सूर्यसे भी लाखों गुने बड़े हैं । तारों की संख्याका भी पार नहीं है । हमें अपनी नग्न दृष्टिसे तो अधिकसे अधिक छठवें प्रमाण तक कोई छै सात हजार तारे ही दिखाई देते हैं । किन्तु दूरदर्शक यंत्रोंकी जितनी शक्ति बढ़ती जाती है उतने ही उत्तरोत्तर अधिकाधिक तारे दिखाई देते हैं। अभी तक बीसवें प्रमाण तकके तारों को देखने योग्य यंत्र बन चुके हैं जिनके द्वारा सत्र मिलाकर दो अरबसे भी अधिक तारे देखे जा चुके हैं । किन्तु तारोंकी संख्याका अन्त नहीं । जेम्स जीन्स सदृश ज्योतिषी वैज्ञानिकका मत है कि तारोंकी संख्या हमारी पृथ्वीके समस्त समुद्रतटोंकी रेतके कणोंके बराबर हो तो आश्चर्य नहीं । और ये असंख्य तारे एक दूसरेसे कितने दूर दूर हैं इसका अनुमान इसीसे लगाया जा सकता है कि सूर्यसे निकटतम दूसरा तारा चार प्रकाशवर्ष अर्थात् अरबों खौँ मीलकी दूरीपर है। ये सब तारे बड़े वेगसे गतिशील हैं और उनका प्रवाह दो भिन्न दिशाओंमें पाया जाता है। इस प्रकार लोकका प्रमाण असंख्य है, और आकाशका कहीं अन्त दिखाई नहीं देता । किन्तु दृश्यमान लोकका आकार कुछ कुछ समझा गया है। तारागणोंका जिस प्रकार भाकाशमें वितरण है तथा आकाशगंगामें जो तारापुंज दिखाई देते हैं, उनपरसे अनुमान Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001275
Book TitleTiloy Pannati Part 2
Original Sutra AuthorVrushabhacharya
AuthorA N Upadhye, Hiralal Jain
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1956
Total Pages642
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Geography
File Size12 MB
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