SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 116
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ हमारा आधुनिक विश्व (९३) निवास करते हैं। भारतवर्षकी जनसंख्या लगभग चालीस करोड़ है जिसमें हिन्दी, मराठी, बंगाली व गुजराती आदि आर्य भाषाओंके बोलनेवाले कोई बत्तीस करोड़ और शेष तामिल, - तेलंगू , कनाड़ी, मलयालम आदि द्राविड़ी भाषाओंके बोलने वाले हैं। इस आठ हजार मील व्यास व पच्चीस हजार मील परिधि प्रमाण भूमण्डल के चारों ओर अनन्त आकाश है, जिसमें हमें दिनको सूर्यमण्डल तथा रात्रिको चन्द्र, ग्रह व ताराओंके दर्शन होते हैं और उनसे प्रकाश मिलता है। इनमें सबसे अधिक समीपवर्ती चन्द्रमा है, जो पृथ्वीसे कोई सवा दो लाख मीलकी दूरी पर है । यह पृथ्वीके समान ही एक भूमण्डल है जो पृथ्वीसे बहुत छोटा है और उसीके आसपास घूमा करता है जिसके कारण हमारे शुक्ल पक्ष और कृष्ण पक्ष होते हैं । चन्द्र में स्वयं प्रकाश नहीं है, किन्तु वह सूर्य के प्रकाशसे प्रकाशित होता है और इसी लिये अपने परिभ्रमणानुसार घटता बढ़ता दिखाई देता है । अनुसन्धानसे जाना गया है कि चन्द्रमा बिलकुल ठंडा हो गया है। पृथ्वीके भूगर्भके समान उसमें अग्नि नहीं है । उसके आसपास वायुमण्डल भी नहीं है और धरातल पर जल भी नहीं है । इन्हीं कारणोंसे वहां श्वासोच्छ्वासप्रधान प्राणी व वनस्पति भी नहीं पाये जाते । भीषण शैल व पर्वतों तथा कन्दराओंके सिवाय वहाँ कुछ भी नहीं है । अनुमान किया जाता है कि चन्द्रमा पृथ्वीका ही एक भाग है जिसे टूटकर अलग हुए कोई पांच-छह करोड़ वर्ष हुए हैं। चन्द्रसे परे क्रमशः शुक्र, बुध, मंगल, बृहस्पति व शनि आदि ग्रह हैं जो सब पृथ्वीके समान ही भूमण्डल हैं और सूर्यकी परिक्रमा किया करते हैं तथा सूर्यके ही प्रकाशसे प्रकाशित होते हैं । इन ग्रहों से किसी भी पृथ्वीके समान जीवोंकी सम्भावना नहीं मानी जाती, क्योंकि वहांकी परिस्थितियां जीवनके साधनोंसे सर्वथा विहीन हैं। इन ग्रहोंसे परे, पृथ्वीसे कोई साढ़े नौ करोड़ मीलकी दूरीपर सूर्यमण्डल है, जो पृथ्वीसे लगभग पन्द्रह लाख गुणा बड़ा है- अर्थात् पृथ्वीके समान कोई पन्द्रह लाख भूमण्डल उसके गर्भमें समा सकते हैं। यह महाकाय मण्डल अग्निसे प्रज्वलित है और उसकी ज्वालायें लाखों मील तक उठती हैं । सूर्यकी इसी जाज्वल्यतासे करोड़ों मील, विस्तृत सौर मण्डल भरमें प्रकाश और उष्णता फैल रहे हैं। एक वैज्ञानिक मत है कि इसी सूर्यमण्डलकी चिनगारियोंसे पृथ्वी व बुध-बृहस्पति आदि ग्रह और उपग्रह बने हैं, जो सब अभी तक उसके आकर्षणसे निबद्ध होकर उसीके आसपास घूम रहे हैं। हमारा भूमण्डल सूर्यकी परिक्रमा एक वर्षमें पूरी करता है और इसी परिक्रमाके आधारपर हमारा वर्षमान अवलंबित है । इस परिक्रमणमें पृथ्वी निरन्तर अपनी कीलपर भी घूमा करती है जिसके कारण हमारे दिन और रात्रि हुआ करते हैं। जो गोलार्ध सूर्य के सन्मुख पड़ता है वहां दिन और शेष गोलार्धमें रात्रि होती है। वैज्ञानिकोंका यह भी अनुमान है कि ये पृथ्वी आदि ग्रहोपग्रह धीरे धीरे पुनः सूर्यकी ओर आकृष्ट हो रहे Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001275
Book TitleTiloy Pannati Part 2
Original Sutra AuthorVrushabhacharya
AuthorA N Upadhye, Hiralal Jain
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1956
Total Pages642
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Geography
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy