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________________ (९२) त्रिलोकप्रज्ञप्तिकी प्रस्तावना मनुष्य के विकास तक प्रत्येक नई धारा उत्पन्न होनेमें हजारों नहीं किन्तु लाखों व करोड़ों वर्षका अन्तराल माना जाता है। इस विकासक्रममें समय समयपर तात्कालिक परिस्थितियोंके अनुसार नाना जीवजातियां उत्पन्न हुई। उनमेंकी अनेक जातियां परिस्थितियों के विपरिवर्तन व अपनी अयोग्यताके कारण विनष्ट हो गई । उनका पता अब हमें भूगर्भमें उनके निखातकों द्वारा मिलता है। पृथ्वीतलपर भूमिसे जलका विस्तार लगभग तिगुणा है- दोनोंका अनुपात शतांशमेंसे २८: ७२ बतलाया जाता है । जलके विभागानुसार प्रमुख भूमिखण्ड पांच पाये जाते हैं- एशिया, यूरोप व आफ्रिका मिल कर एक, उत्तर-दक्षिण अमेरिका मिलकर दूसरा, आस्ट्रेलिया तीसरा, तथा उत्तर ध्रुव और दक्षिण ध्रुव । इनके अतिरिक्त अनेक छोटे मोटे द्वीप भी हैं । यह भी अनुमान किया जाता है कि सुदूर पूर्वमें सम्भवतः ये प्रमुख भूमिभाग परस्पर जुड़े हुए थे। उत्तर-दक्षिण अमेरिकाकी पूर्वी सीमारेखा ऐसी दिखाई देती है कि वह यूरोप-आफ्रिकाकी पश्चिमी सीमारेखाके साथ ठीक मिलकर बैठ सकती है। तथा हिन्द महासागरके अनेक द्वीपसमुदायों की श्रृंखला एशिया खण्डको आस्ट्रेलियाके साथ जोड़ती हुई दिखाई देती है। वर्तमान में नहरें खोदकर आफ्रिकाका एशिया-यूरोप भूमिखण्डसे तथा उत्तर अमेरिकाका दक्षिण अमेरिकासे भूमिसम्बन्ध तोड़ दिया गया है । इन भूमिखण्डोंका आकार, परिमाण व स्थिति परस्पर अत्यन्त विषम है । इस समस्त पृथ्वीपर रहनेवाले मनुष्यों की संख्या लगभग दो अरब है । भारत वर्ष एशिया खण्डका दक्षिण पूर्वीय भाग है । वह त्रिकोणाकार है। दक्षिणी कोना लंका द्वीपको प्रायः स्पर्श कर रहा है । वहांसे भारतवर्षकी सीमा उत्तरकी ओर पूर्वपश्चिम दिशाओंमें फैलती हुई चली गई है और हिमालय पर्वतकी श्रेणियोंपर जाकर समाप्त हुई है । देशका उत्तर-दक्षिण तथा पूर्व-पश्चिम दिशाओंका उत्कृष्ट विस्तार लगभग दो हजार मीलका है । इसकी उत्तर सीमापर तो हिमालय पर्वत फैला हुआ है, मध्यमें विन्ध्य और सतपुडा पर्वतमालायें पायी जाती हैं, तथा दक्षिणके पूर्वीय व पश्चिमी तटोंपर पूर्वी घाट और पश्चिमी घाट नामक पर्वतश्रेणियां फैली हुई हैं । देशकी प्रमुख नदियां हिमालयके प्रायः मध्यसे निकलकर पूर्वकी ओर समुद्रमें गिरनेवाली ब्रह्मपुत्रा व गंगा और उसकी सहायक जमना, चम्बल, सिंध, वेतवा, सोन आदि हैं तथा पश्चिमको और समुद्रमें गिरनेवाली सिन्धु व उसकी सहायक नदियां झेलम, चिनाब, रावी, व्यास और सतलज हैं। गंगा व सिन्धुकी लम्बाई लगभग पन्द्रह सौ मीलकी है। देशके मध्यमें विन्ध्य और सतपुड़ाके बीच पूर्वसे पश्चिमकी ओर समुद्र तक प्रवाहित नर्मदा नदी है, तथा सतपुड़ाके दक्षिण में ताप्ती । दक्षिणकी प्रमुख नदियां गोदावरी, कृष्णा और कावेरी पश्चिमसे पूर्वकी ओर प्रवाहित हैं। देशके उत्तरमें सिन्धसे गंगा कछार तक प्रायः आर्य जातिके, सतपुड़ाके सुदूर दक्षिणमें द्राविड जातिके, एवं पहाड़ी प्रदेशोंमें गोंड, भील, कोल व किरात आदि पर्वतीय जातियोंके लोग Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001275
Book TitleTiloy Pannati Part 2
Original Sutra AuthorVrushabhacharya
AuthorA N Upadhye, Hiralal Jain
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1956
Total Pages642
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Geography
File Size12 MB
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