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________________ १४७ मुद्रित पाठ ४२ भाचार वाले ५६ वह विशाल की ५६ भौर...जायगी ५७ वह सुकेतु ८ हिन्दी अनुवाद संशोधन पठितव्य पाठ मुद्रित पाठ रूप वाले ६२ बीच...हुए । वह प्रवर के निज मामा विशाल की x निकाल दो ६७ यथाशक्ति उपवास यहो बात होगी ऐसा कह करके वह ७४ इन्द्र के आयुध वज्र सुकेतु ७७ उद्यमशील विशाल की विधूता ७. भमन्यदधि (सम्यग्दृष्टि) उद्देश-४२. बकुल, तिलक, अतिमुक्तक, २२ उन...भौरों को शतपत्रिका और कुरैया से शमी, केतकी, बेर ३० लपेट रहे 'ऐसा ही हो' यह कहकर प्रिया के ३३ टहनियां...फूटे हैं उद्देश-४३ विमुक्त होकर सुख की स्थिति को प्राप्त ३५ हुई...विशालाक्षीने पठितव्य पाठ बीच हमारे पिता की सभा (न्यायालय) में अभियोग चला और दोनों में वाद प्रतिवाद हुभा । यथाशक्ति एवं भावना पूर्वक उपवास इन्द्रधनुष प्रमादरहित तृष्णारहित दृष्टि से ५९ विशाल की धुता ८ बकुल, भतिमुक्तक ८ शत्रपत्रिका से ९ शमी...बेर ११ ऐसा...प्रिया के चक्कर लगाते हुए उन बहुसंख्यक भौरों को हैं, लता मण्डपों से युक्त हैं, फोड़ रहे प्ररोहों का समूह जिसमें से फूटा है ३ विमुक्त...प्राप्त १९ के साथ २० जंगल में...दृष्टिपथ में हुई व अश्रु बहने के कारण उस विकलाक्षी ने x निकाल दो पाप से परिगृहीत तथा स्वजनों द्वारा परित्यक्त मैं वैराग्य धारण २१ भभ्यास...वाढे २१ जंगल में ५ रखकर ...गाय की ६ मेरा ८ किसी तरह १५ हुई सीता १७ भाकाशमें से हुए निगाह करते हुए उसने नीचे मुख की हुई, सम्मोह उनके नाम इस प्रकार मनुष्यों में सार रूप उत्तम १ फिर...ठहरो। ९ वनके...मेरे जंगल में मेरे नियम और योग की ३५ लीलापूर्वक समाप्ति के पहले जो दृष्टिपथ में विधान पूर्वक ४३ पापी ... धारण झुरमुट में उद्देश-४४ रख कर वत्सविहीन गायकी ३० जाते...सम्मोह मेरा गाढ़ बड़ी कठिनाई से हुई भयभीत सीता ३२ उसके नाम . भाकाश में आच्छादित होते हुए ६२ इस...उत्तम उद्देश-४५ -तुम मेरे पीछे खडे हो जाओ। ३८ जल्दी ही...जायँ बिना कसूर अथवा मध्यस्थ भाव वाले ३८ बैठकर ...पता मेरे १२ भी....नहीं उसको लक्ष्मण ने बाणों से मूर्छित करके। वीध दिया । ४३ धीरज धारण की। उद्देश-४६ प्रेमाशा नहीं छोड़ी। ४९ शान्ति देता है। जिसकी तुम्हारे द्वारा ५९ इस रावण के ...दो। साथ याचना की जाती है । ७० तथा समुच्चय देवसुख का ८० पूजा जो राम और लक्ष्मण तुम्हारे कल्याण ८१ चिन्तातुर के लिए नित्य उद्यमशील हैं वे भी ८२ मिश्वाश जल्दी ही पातालंकारपुर चळे जायें बैठकर भामण्डल के बारे में पता भी प्रसन्नता प्राप्त नहीं भानन्द प्राप्त किया । १५ मूर्छित...डाला । ९ प्रेम न छोड़ा । २८ जिसे कि तुमने २८ साथ देखा है। ३९ शरीर-सुख का १. जिन...वे भी सुख देता है। यह रावण ले जाकर मुझे राम को सौप दे तथा चौथे समुच्चय बांछना चिन्तामग्न निश्वास Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001273
Book TitlePaumchariyam Part 2
Original Sutra AuthorVimalsuri
AuthorPunyavijay, Harman
PublisherPrakrit Granth Parishad
Publication Year2005
Total Pages406
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Literature, Story, & Jain Ramayan
File Size11 MB
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