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________________ १४८ मुद्रित पाठ ८५ जैसा...हुमा हूँ? ८६ ऐसा सोचकर ३• तुम्हें...और ३७ कष्ट पूर्वक १ धैर्य के ४ दसरा...नहीं * जब... सीते ! ९ दुष्ट बुद्धिषाले ९ रामने...है। १ उपचार किया । २१ शवसुर ३४ राजा का ६१ विलासभूति ६५ उस...बन में पउमरियं पठितव्य पाठ मुद्रित पाठ पठितव्य पाठ जैसा क्यों निरूपित कर दिया गया हूँ। ९४ थोडे से त्रिपृष्ठों द्वारा छोटे से त्रिपृष्ठ द्वारा x निकाल दो। उद्देश-४७ तुम्हारे कार्य को पूरा करूँगा और ४४ युक रहित ५४ सुरमति विट सुप्रीव की सुरवती ५४ पनामा पद्मावती उद्देश-४८ सुख के ७९ काय कार्य सरी कोई कथा वे नहीं ८० करनेवाले...तिरस्कृत करते हुए इस प्रकार भाईयों व उनके पास में बैठी हुई (कन्या) को भी वे सीते! परिवार द्वारा तिरस्कृत ८७ यह...देगा यह छोद न देगा पापमति १०० परिपूर्ण पूभित रामने तुम्हारे जैसे दुष्टचरित्र वाले १०२ सिन्धु देश में नदी अथवा समुद्रस्थल पर (साहसगति) को मेजा है। १११ विरह से ...सीता विरह में कृशकाय बनी सीता उपकार किया । १२. वानरों में से...करें। वानरों के किसी नीति कुशल सामन्त श्वशुर की आप शीघ्र खोज करें। रघुपति का १२५ बल से...चाहिए। अति बल से गर्वित तथा अपने सामर्थ्य विशालभूति से युक्त पुरुष को किसी कारण (वस्तु) उस पत्नी के वचन से बह विनय पर अपनी बुद्धि से विचार करते हुए बहाने से धन में भी सदा विमल (हृदय) होना चाहिए। उद्देश-४९ दूत को भाता हुभा देखा । तक का ३३ (३३-३४) हनुमान ने सुप्रीव की पुत्री (कमला) ३४ भा जाऊँगा । आ जाता हूँ। को बुला करके दूत से पूछा । ३४ (३५) यह विश्वास दिलानेवाली अंगूठी ले वश में आकर उसको देना और उसकी (सीता अपने संयोग के की) चूडामणि मेरे लिए ले माना । उद्देश-५० मैं निश्चय ही उस २० दुन्दुभि भौर ढोल तूर्य आदि उद्देश--५१ साधना के २४ देव के आगमन के देश लौटने के तुम रहती हो उद्देश-५२ त्रिक्ट को ८ वज्रमुख स्वयं उठ वज्रमुख रुष्ट हो स्वयं उ. . पता लगाभो जैसी गर्जना करने वाले हनुमान...नामक हनुमान को लंका (सुन्दरी) कन्या का माशालिका के लाभ नामक ३३ धर्म धर्म १-१ दूत को देखा। ३ आदि का ९ हनुमाम ने बुलाया २७ प्रसन्न ३२ चित्तस्वस्थता के ५ मैं उस १ साधना के ११ तुम ठहरी हो १ चित्रकूट की २ सूचित करो ५ जैसी भुजाओं वाले ६ सर्पिणी के Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001273
Book TitlePaumchariyam Part 2
Original Sutra AuthorVimalsuri
AuthorPunyavijay, Harman
PublisherPrakrit Granth Parishad
Publication Year2005
Total Pages406
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Literature, Story, & Jain Ramayan
File Size11 MB
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