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________________ २४६ पडमचरियं पठितव्य पाठ अप्रमत्त शीघ्र ही तुम्हारे वश में नर्तिकाने कहा, हे भतिवीर्यक। लोगो में उपयोग पूर्वक लक्ष्मण ने कहा, हे राजत् ! मैने तो हे माम ! तुम शत्रदमन ने भी इसी प्रकार अपने मधुर वचनों से उसे क्षमा करके कहा कि भोगों में अतिपोषित होकर लक्ष्मण वनमाला की तरह उसको भी भाश्वासन देने लगा। कर मुद्रित पाठ पठितव्य पाठ मुद्रित पाठ ३१ इस पर रामने कहा कि, x निकाल दो १२ प्रयत्नशील ३५ अतिवीर्य....हजारों सुना जाता है कि अतिवीर्य बहुत से ४४ शीघ्र ही वश में हजारों ५३ नर्तिकाने...लोगो में ३९ सेना को...है । साधन का हरण कर रहा है। ६१ श्रद्धा पूर्वक उद्देश-३८ २ उस...सीता के उसे कान्ता के रूप में स्वीकार करके १६ राजा ने...मैने सीता के १६ तो तुम १३ जरके करके १७ इस...कहा कि १७ मैं वापस मैं आश्रय-स्थल (निवास स्थान) निश्चित करके वापस ५४ भोगों में अनुत्सुक ३८ उगली । उठायी। ५५ लक्ष्मण...भी हो। ३९ उसने भी दाहिने उसने उस आती हुई शक्ति को दाहिने उद्देश-३९ ४ पार करके पार करते हुए ५४ हाथी के...तथा ११ सीता को...रखकर सीता को मार्ग में (चलने के लिए) स्थिर ७३ उपसर्ग से युक्त ९२ सोचते ही हमारी १२ निर्मल बड़ी बड़ी १६ हाथियों को सों को ९९ यह...है । १७ नामा वर्ण के... देखा नाना वर्ण के बिच्छुओं तथा भयानक __१०१ दूसरी पत्नी घोनसों (सी) द्वारा घेरे गये उन १.१ मदनवेगा...हुई । मुनियों को दशरथ-पुत्रों ने देखा । १८ उन्होंने...तब धनुष के अग्र भाग से बिच्छुओं और सो को चारों भोर से दूर हटा करके १०६ तापसगुरुओं को तब ११२ यह सरल है। ३४ यथायोग्य ... वे यथाविध वे ११३ मैं...हूँ। ४. दौत्यकार्य के अपने कार्य के ११५ वेश्या के ४५ ब्राह्मणपत्नी ने जैसा ब्राह्मणपत्नी ने कामक्रीड़ा के लिए जैसा १२३ अपना...जानकर ४५ रात के समय x निकाल दो १२३ वाणी को हृदय से ४९ साथ...मतिवर्धन साथ वह गणनायक मतिवर्धन १२१ अवधि ज्ञान से...उसने ४९ एवं दूसरे प्राणियों से प्राणियों से उद्देश-४० १ वे भी उन्हें भी ६ सहसा उन्नत सहसा बहुत सी ऊँची केचा १२ दूसरे देश में उद्देश-४१ १२ मुनियों को...देखा मुनियों को और उस परम भतिशय को १५ शोभावाला देखा । २३ में योग १२ परमअतिशययुक्त x निकाल दो २६ रहा हुआ १४ पक्षी....उनके पक्षी संसार का उच्छेदन करने के २८ भंडा निमित्त से उनके ३७ अरण्य में....किया । हाथी के चलायमान कान तथा उपसर्ग से मुक्त उसके विषय में उनकी ऐसी धारणा हुई कि हमारी यह महालोचन है। दूसरी अमानिती पत्नी मदनवेगा थी जो दत्त नामक मुनिवर के पास में सम्यक्त्वपरायणा हुई थी। तापसगुरु को यह अनुकूल है। मैं कुंवारी कन्या हूँ। द्वेष्या (अमानिती स्त्री) के x निकाल दो वाणी को सुनकर हृदय से भवधि ज्ञान से हमको यहाँ योगस्थ जानकर उसने दूसरे स्थल पर शोभा को प्राप्तकर मैं यह योग रहता हुआ विकार प्राप्त भरण्य में ही भानन्द मानता है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001273
Book TitlePaumchariyam Part 2
Original Sutra AuthorVimalsuri
AuthorPunyavijay, Harman
PublisherPrakrit Granth Parishad
Publication Year2005
Total Pages406
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Literature, Story, & Jain Ramayan
File Size11 MB
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