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________________ मुद्रित पाठ ११ रत्नत्रज १० प्रदक्षणि ४२ पद्माभ ४४ आयुध, हरिश्चन्द्र ६३ नाकका ६८ ज्योतिषियों के ९५ उत्तम गायें खरीदी ९६ शत्रों में कुशल ९६ संकेत करके १०६ वशन्त ११४ सौधा में १२४ अब ... भय १२४ पथ्य- ... है। ८ हिन्दी अनुवाद संशोधन पठितव्य पाठ मुद्रित पाठ पठितव्य पाठ के जोत (योक्त्र) के अर्द्ध भाग वे महापुरुष भागे बिना एक दूसरे का खोल चढ़ा हुआ था और के सम्मुख रहकर युद्ध करने एक दूसरे को मार गिराने में ऊँचे किये हुए हाय चक्राकार लगे । (यह भर्थ भी असंदिग्ध नहीं रूप में घूम रहे थे । इस प्रकार कहा जा सकता ) उद्देश-५ रत्नवज्र १९४ तुम्हारा किसने नंघ । बिना अपराध किए हुए ही प्रदक्षिणा किस दुष्ट वैरी ने तुम्हारा वध पद्मनिभ २.१ भगीरथ को जाह्नवी के पुत्र भगीरथ को आयुध, रकोष्ट, हरिश्चन्द्र २०३ मलकापुरी में अमरपुरी में नामका २११ क्षुद्र......कर डाला उस गाँव के लोग क्षुद्र कीडों के रूप निमित्त शास्त्रियों के में उत्पन्न हुए और हाथी के द्वारा उत्तम गाय खरीदी वे सब कुचल दिये गये । शास्त्रों में कुशल २१६ यह वृत्तान्त यह प्रस्तावोत्पन्न वृत्तान्त मंत्रणा करके २२२ धर्म से विरहित पुरुष विषय सुखों का भोग करके परन्तु उपशान्त धर्म से विरहित होने के कारण पुरुष सौधर्म २२९ करने के लिए गया करके अब मेरी बात सुनो जो भय २२९ जिनवर की......लगा। जिनगृह में जयजयकार करने लगा। पथ्यरूप होगी और उपस्थित २३४ चामरविक्रम को चारण मुनियों के विक्रम को प्रसंग में निवृत्त (सुख-शान्ति) २४५ अलकापुरी अमरपुरी लाने वाली है। २४८ आवर्त विकट......रवि- आवर्त, विकट, मेघ, उत्कट, स्फुट, प्राकारों वाली राक्षस के दुर्ग्रह, तपन, आतप, अलिक और रत्न से स्वीकृत (प्राप्त) ये समृद्धिशाली रविराक्षस के छ: योजन गहरा, छ: योजन २४९ राक्षसपुत्रों द्वारा निर्मित वे राक्षसपुत्रों के क्रीड़ार्थ वे लम्बा तथा २५१ इस प्रकार......राक्षस इस स्थल पर रविषेण के पद्मचरित में मामक माम का पुत्र उत्पन्न एसा है:-"राजा मेघवाहन की परंपरा विद्याधरों से सुसमृद्ध हुआ में (जो राक्षस द्वीप का आदि राजा शीतल, श्रेयांस, था) मनोवेग नामक राक्षस से राक्षस नाम का पुत्र उत्पन्न हुआ ।" और चैत्यभवनों की प्रशंसा की। यही पाठ उचित मालूम होता है। आज्ञा पाकर २५७ पुज्य द्वारा......करते थे, उन द्वीपों को रक्षा करने वाले राक्षस देवेन्द्र होते हैं वे भी ऐश्वर्यसे अतः ये जिन्होंने अपने पुण्य से उनकी रक्षा देदीप्यमान हेकर हुतावह के को थी, अतः समान फिर बुझ आते हैं। २६१ सुव्रत सुव्यक रूपबाले हे मेरे उद्देश्य समाप्त हुआ। उद्देश समाप्त हुआ। उद्देश-६ राक्षसर्वश ३७ महासागर......उसने महासागर को आकाश के समान फैला दक्षिण श्रेणी में हुआ उसने सुयोधन, जलदण्यान ११ बजाते थे तथा कूदते थे तथा १२९ प्रकार वाली १३१ द्वारा रक्षित १३२ छः जिन लम्बा तथा १३२ (लंक नगरी) नामक १३. विद्या पर ... समृद्ध ११७ शीत १४८ अमर 1. चैत्यम्बन में प्रवेश किया । 1७७ संज्ञा करने पर १८२ तथा वैभव से ... जाते हैं। ९४ रूपवा ... हे मेरे १ राक्षरवशं २ दक्षिण शाखा में १ सु-उइन, जलाध्याय Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001273
Book TitlePaumchariyam Part 2
Original Sutra AuthorVimalsuri
AuthorPunyavijay, Harman
PublisherPrakrit Granth Parishad
Publication Year2005
Total Pages406
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Literature, Story, & Jain Ramayan
File Size11 MB
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