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________________ १३४ मुद्रित पाठ ६० ऐसे समूह ७३ राग में और द्वेष में ७५ चौराहे में खड़ा हुआ जीव...मानवयोनि ७६ भी मन्द पुण्य के... शबर १०० इससे सज्जनों के .... जाता है २ मुनिवर भगवान महावीर के ९ बन्दर एवं तिर्यचों २३ दस योजन चौदा है । २७ गुफाएँ तथा उत्तर कुरु २७ मध्य में... आए हैं । ५५ उसके बाद धीर ... ५५ चन्द्र के... तथा ५६ प्रिय तुल्य थे । ५७ कुलकर आवास था । ... दि. ३ दिगम्बर परम्परा में स्वप्न ६७ पन्द्रह दिन तक ८० शिखर पर हो रहा था । २५ धर्म से जीव एवं मनुष्यों के ४५ | फिर उन्होंने ... ४६ | ऐसा प्रतीत होता था । { Jain Education International पठितव्य पाठ ऐसे प्रसन्न हृदय समूह रोग और शोक में चार अंगों (गतियों वाले मार्ग (प्रवाह) में पड़ा हुआ जीव बड़े दुःख के बाद मानवयोनि भी जीव मन्द वैभववाठे शबर मानो सज्जनोंके चरित्ररूपी प्रकाश पर दुर्जनस्वभावरूपी अन्धकार की मलिनता छा गई हो । मुनियों के बन्दर रूपी जानवरों दस हजार योजन चौड़ा है । गुफाएँ तथा तीस सिंहासन हैं और उत्तरकुरु मध्य में उत्तम दिव्य वृक्ष हैं । उसके बाद महात्मा ( यशस्वी ) और तत्पश्चात् धीर, अभिचन्द्र, चन्द्राभ तथा पिता तुल्य थे । कुलकर जहाँ पर रहते थे वह स्थान विचित्र गृहकल्पवृक्ष से और अनेक प्रकार के उद्यान एवं बावलियों से परिव्याप्त आनन्दो का आवास था । दिगम्बर परम्परा में ध्वज के बदले मीनयुगल, विमान-परभवन दो अलग वस्तुएँ तथा सिंहासन को मिलाकर इस प्रकार पउमचरियं १६ स्वप्न पन्द्रह मास तक शिखर के शिला समूह में जड़ी विविध महामणियों से निकलती उद्देश - २ मुद्रित पाठ १०१ पुष्पोंकी चादर १०२ और अत्यन्त... १०३ संगीत से.... करने लगा । धर्म से जीव देवों एवं मनुष्योंके फिर दोनों अत्यन्त दर्प के साथ आपस में बाहुयुद्ध में जुट गये। तीव्रगति से चलायमान तथा ११० नगारों और... समय पूर्ण ८५ चन्द्रकान्तमणि की भाँति ८७ जैसे बार्थों की ९८ उसने पहनाई। ... ११२ उस समय ११४ कल्याणप्रद उद्देश - ४ १३६ जैन दीक्षा १५१ दोनों ओर ऊँचा था । १२१ पुरोहित सेठ [१२] इन्द्रनीलमणि १३२ दर्शनीय ... For Private & Personal Use Only पूछता था ... ... टैंक दिया । तथा शिल्पों की एक कोस पठितव्य पाठ पुष्पांकित चादर से और परम संशय को उनसे प्रयुक्त पूर्वक पूछता था । संगीत के साथ शत शत मंगलों से स्तुत्यमान वह महात्मा (राजा श्रोणिक) उठा । नगाड़ों और दूसरे वाद्योंके सामने बजते हुए भी वह उनको नहीं सुनता था और समय पूर्ण हुई ( ज्योति ) किरणों से वह देदीप्यमान हो रह चन्द्रमा की ज्योत्सना का भौति जैसे वाद्यों से मेघ की गर्जना के समान जन्माभिषेक बजाया गया । उसके ऊपर चूड़ामणि पहिनाई और सिर पर संत्राणक शिखर (मुकुट ) की रचना की । उस समय कल्याणमय प्रसंगों (व्यवसाय) तथा कल्याणप्रद प्रसंगों (व्यवसाय) तथा सैकड़ों शिल्पों की पुरोहित, सेनापति, सेठ इन्द्रनीलमणि, मरकतमणि, सुदर्शन नाम की शिबिका में यति-दीक्षा वह पच्चीस योजन ऊँचा तथा छः योजन और एक कोस(अर्थात सवा छः योजन) पृथ्वी में गहरा था। उस पर दो श्रेणियाँ थीं जो दोनों बाजू से सुन्दर थीं। मजबूती से एक दूसरे पर मार लगाते हुए उनके हाथ के तले परिपूर्ण रूप से भति चंचल हो उठे थे। उनके हाथों पर चमक www.jainelibrary.org
SR No.001273
Book TitlePaumchariyam Part 2
Original Sutra AuthorVimalsuri
AuthorPunyavijay, Harman
PublisherPrakrit Granth Parishad
Publication Year2005
Total Pages406
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Literature, Story, & Jain Ramayan
File Size11 MB
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