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________________ प्रतिसूर्य परिशिष्ट ८ हिन्दी अनुवाद संशोधन उद्देश-१ मुद्रित पाठ पठितव्य पाठ मुद्रित पाठ पठितव्य पाठ ८ कथा को ......और कथा को जो नामावलि निबद्ध रूप में और ५५ विराधितपुर में...... विराधित नामक पुत्र का लाभ', सुग्रीव १३ अपने-अपने ....... आगमशास्त्र की विशेषता के अनुसार समागम को राज्य (श्री) की प्राप्ति - .. - गुणों के अनुसार ५६ साहसगति की ...... साहसगति की मरणतुल्य भवस्था तथा १४ पवन के पत्तों के पवन के द्वारा हृत पत्तों के और उसका उसका परम संताप और दशमुख का १५ जब श्रुतधर तीर्थकर जब तीर्थङ्कर ५७ उपरम्भाविषयक उपरम्भा की १५ हमारे जैसे मन्दबुद्धि तो हमारे जैसे मन्दबुद्धि श्रुतधर तो ५९ हनुमान की उत्पत्ति हनुमान की जन्मकथा २४ जौककी ...... समान जौक व शुक्ति के पृष्ठभाग के समान ६१ प्रतिसूर २८ अतएव......नीतिनिष्ठ अतएव मूढ़ता का त्याग करके सर्वादर ६२ पवनंजय का निश्चय पवनंजयका : नियम (प्रतिज्ञा) पूर्वक नीतिनिष्ठ ६४ चक्रवर्ती ...... प्रयत्न चक्रवर्ती प्रमुख बलदेव, केशव व प्रति२९ समुन्नत शिखर पर पर्वत पर वासुदेवों के चरित ३० भौरे के......बूंदों में भौरे के जैसा मैं भी पूर्वकवियों के ६५ इन्द्र के साथ ...... यह सम्पूर्ण गाथा मूल प्राकृत में ५७ वी चरणरूपी मद की ,दों में ग्रहण करना गाया के पश्चात् आनी चाहिए थी। ३२ युद्ध के लिए प्रस्थान वन के लिए प्रस्थान ६६ विदेह में ...... कारण विदेहाका शोक प्रकरण ३३ द्वारा ...... तुम सुनो द्वारा यह पद्म का चरित सहेतु तथा ७. उसके द्वारा राजकुमारी की राजकुमारियों की ! अधिकारों सहित कहा गया है, इसे ७५ कैकेयी के......आगमन कैकयी('सुमित्रा)पुत्र लक्ष्मण का अब सूत्र रूप में संक्षेप में तुम सुनो। पुनरागमन ३८ विद्युद्दष्ट्रके.......उत्पत्ति विद्याधर वंश और विद्युद्दष्ट्र की उत्पत्ति ७६ विद्याबल ...... प्राप्ति केशव (लक्ष्मण) को विद्यावल की प्राप्ति १२ अतिकान्त......जन्म महाराक्षसका संसारत्याग, उसकी ७८ वहाँ अष्ट......रावण का वहाँ देवों का अद्भुत कार्य, वानरभों का सन्तान के जन्म ८२ मनोरमाकी......लवण की श्रीवत्स-युक्त देह को धारण करने वाले ४७ श्रीमाल खेचरों का आगमन श्रीमाला आदि खेचरों की उत्पत्ति (लक्ष्मण) को मनोरमा की प्राप्ति और ४५ पादालंकार नाम की . पातालंकार नामकी राक्षस मधु के महान् पुत्र लवण की १६ सुकेशी के......उनकी मुकेशो के बलवान पुत्रों का लंका की ८४ विजय प्राप्त करने वाले मृत्यु तरफ प्रस्थान व प्रवेश और निर्यात ८५ अष्ट प्रातिहार्यों की रचना (सीता की अग्नि परीक्षा की) भभुत के वध का वर्णन घटना ५. अपमानित यक्ष का क्षोभ यक्ष अनाहत (जम्बूद्वीप का भधिष्ठायक ९. बाद में......याद रखी। बाद में उत्तम साधुओंने धारण की देवता) का क्षोभ भौर लोक में प्रकाशित की। उद्देश-२ १ धर्मका...... थे। धर्म में निष्कपट मति रखनेवाले थे। ३१ तथा अत्यन्त तथा सूर्य की प्रभा के समान भत्यन्त ७ संक्रामक रोग मृत्युदायक रोग ३२ संक्रामक रोगों से मृत्युदायी रांगों व उपद्रवों से १७ हुए तथा......युक्त हुए अपने अतिशयों और विभूतियों से युक्त ९ बन्दरों के मुंहके जैसे कपिशीर्षक जैसे ३९ हाथी के गण्डस्थल हाथी का कुम्भस्थल १३ विशाल...वे मधुर मनोहर खेल-तमाशों (प्रेक्षणक) के कारण ११ विमलगिरि विपुलगिरि मधुर ५. तीन भाग भाग १५ अलका की भमरावती की ५१ दो वक्षस्कार दो (बारह वक्षस्कार ३. आठ कमा का आठ के आधे चार कर्मों का ५७ व्यन्तरकन्या व्यन्तर देवियाँ पदमचरिख का पाठ शंकास्पद है। आगे वर्णित कथानक में तथा रविषेण के पद्मचरितम् में भी इसी घटमा का उल्लेख है। २ सुमित्रा का अपरमामयी भी भाता है। ३ पउमचरिय का पाठ शंकास्पद है। यहाँ पर 'भह दोष्णि' के स्थान पर 'दह दोण्णि' होना चाहिए था जिससे भागे के वर्णन के साथ सुसंबद्ध हो सके। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001273
Book TitlePaumchariyam Part 2
Original Sutra AuthorVimalsuri
AuthorPunyavijay, Harman
PublisherPrakrit Granth Parishad
Publication Year2005
Total Pages406
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Literature, Story, & Jain Ramayan
File Size11 MB
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