SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 377
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ७. पाठान्तराणि क १११ १.. गेण्हन्ती जे ११२ कि थ कौरउ जे ११९ ताण वि होउ विबोहि व विमलचरिया...जे ने १.७ न्ति हि कागिणी स ११२ लोगम्मि ख ११९ हि स हिंसविमल चरि याण जिणइंदे १०८ वइरनिमित्त "म्मि य मुंचह, रमह जे ११९ साणं ॥११९॥ ८६८४११ १०८ रीसंसय ११२ वि उजमह सया ख १०३०० ॥ छ । १०८ परलोगकंखी मंगलं महा श्रीः ।। १.९ मणूसो इमा: गाथाः न सन्ति इइ... समत्तं इति १.९ दुचरियफलेण नास्ति प्रत्योः १.९ लहति ख ११४ 'न्तु संसणिज्झं ज° मु पव्व।। ग्रंथान १०५५. १.९ पवाहो इमी जे 'न्तु समणिझं, जौं क सर्व संख्या ॥छ।। °न्तु सुसने अ ११. न य कोइ देइ के नास्तीमा पुम्पिका प्रतिषु अतिरिक्त इति पउमचरिय सम्मत्तं । ग्रन्थाप्रम् सवै संख्या ॥ ११० भारोगधणं ११६ खमंत मह अक्खर-मत्ता-बिंदू, जं च न लिहियं अयाणमाणेणं । ११० दिति ११७ बहुनामा आयरिओ त खमसु सब्ब महं, तित्ययरविणिग्गया वाणी ! ११. विजयो तस्स उ सी शुभं भवतु ॥ श्री संघस्य श्रेयोऽस्तु । ११० लोए ताहे कि ११८ पुव्वगय, ना । ग्रन्थाग्रम् १२००० । संवत् १६४८ वर्षे वइसाख वदि १. गंमेव गिहिया सवे ख ११८ 'यण रामचरि' क,ख ३ बुध ओझा रुद्र लिखिन ।। लेखक पाठकयोऽस्तु -स संकेत-संदर्भ:जे = जैसलमेर की ताडपत्रीय प्रति क - मुनि पुण्यविजयजी संग्रह नं. २८०५ ख." , " में. ४१७८ म = मुद्रित (प्रो. याकोबी द्वारा संपादित पउमचरियं की प्रति का पाठ और 'जे' प्रति का पार भी यदि उसका कोई अन्य पाठान्तर नहीं हो ) जिस पाठ के आगे कोई संकेत नहीं है उसे शुद्धिकरण समझना चाहिए । मोटे टाइप में मुद्रित पाठ को स्वीकरणीय पाठ समझना चाहिए । - - Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001273
Book TitlePaumchariyam Part 2
Original Sutra AuthorVimalsuri
AuthorPunyavijay, Harman
PublisherPrakrit Granth Parishad
Publication Year2005
Total Pages406
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Literature, Story, & Jain Ramayan
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy