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________________ १३६ पउमचारियं पुरी मुद्रित पाठ पठितव्य पाठ मुद्रित पाठ पठितव्य पाठ १६ उसके द्वारा...करती थी । प्रासाद, ऊँचे तोरण व मणि और रत्नों १७५ निर्मित उसने निर्मित वह माला उसने की किरणों की भाभा से शोभित वह १७५ गल में माला गले में भगरी ऐसी प्रतीत होती थी जैसे कि १८० गर्भाख से गर्जनारव से देवनगरी की शोभा को हर करके २१. सुरपुर भलकाके सुरपुरी के (उससे) उसका निमाण किया गया हो। २१८ कर्णपुर कर्णकुण्डल ५८ मैं यहीं पर मैं भव से २२३ राजा से पूछा कि लंकापुरी राजा से पन किरः । तब वह लंका६२ उसको बचाकर उसकी परीक्षा कर ७४ भलका नगरी के समान अमरपुरी के समान २२३ हुआ हो वह...... हुभा या वह यशार्थ रूप से कहने १०० करने के लिए गया। करने लगा। २२४ । उसने कहा कि उस लगा कि उस १११. धर्म एवं......सब धर्म से अनभिज्ञ मुझ पापी के सब २२९ उनका आगमन...बाहर रा६. भटों का भागमन सुनकर निर्धात ११७ मुनिवर द्वारा दिया गया (इसको शीर्षक रूप में रखों) निकः । अपना तलवार व बाणों की प्रचुर धर्मोपदेश किरणों से प्रज्वलित होकर सूर्य की भांति ११७ परमार्थ के विस्तार को परमार्थ के निश्चय को उनका सामना करने बाहर निकला । १३० नगरमें प्रविष्ट होनपर भी भरण्य में प्रविष्ट होने पर २४२ (२१२-२१३) (२४२) १३१ ......... इसको १३२ के बाद पढ़ो ऐसे ही समय व्यतीत होते सुकेशी १४१ पीड़ित होने...रहा हूँ। ध्यामलीन होने पर भी वह साघु अपने और किष्किन्धि जो विख्यात यश वाले मन में ऐसा सोचने लगा कि मुक्कों थे, संवेग उत्पन्न होने पर प्रवजित हुए के प्रहार से भाहत कर मैं इस पापी • तथा भनेक वानरों एवं राक्षसों ने को चूर चूर कर हूँ। भी प्रव्रज्या ली। (२४३) उद्देश-७ ४ आँखें फैलाकर उसने उस मृगाक्षी ने ६. उसे माया...उसे दी। व्योमबिन्दू ने यह जानकर कि उसको ६ परम ऋद्धि फैलाकर परम ऋद्धि और परिषदादि (रत्नश्रवाको) विद्यासमूह की प्राप्ति हो १. भणिमा...ऋद्धियाँ सातो प्रकार के सैन्य (भनीक) गयी है, अपनी पुत्री केकसी को उस १२ साथ राज्य साथ सभी खेचरों का स्वामित्व उद्यान में उसकी परिचर्या के लिए १३ विद्याधरोंको....सुनकर इन्द्र विद्याधरों का स्वामी बना है ऐसा नियुक्त कर दी। सुनकर ९१ पृथ्वी पर...बालक ने । बिस्तर पर से वह बालक अमीन पर १३ विमाली ने माली ने लुढ़क भाया और उसने १५ भथवा मैं...जाता हूँ। भथवा वापस लंकामगरी को रौः चलें।। १२१ रूपों से...उन्होंने रूपों से भी जब वे उनको क्षुब्ध नहीं - १७ अरिष्टसूचक काक कर सकें तब उन्होंने ३० देखकर...होता था । देखकर इन्द्र शस्त्रसमूह सहित शिखर के समाम स्थित हो गया जैसे सूर्य १३४ वह समय...बड़ी बड़ी उसी के कारण अवधि पूर्ण होने के पहले ही रावण को बड़ी बड़ी के सामने पर्वत १३७ अक्षोभ्या क्षोभ्या ३० सोम नामके देव ने सोम नामके शूरवीर ने १४. भुवना, दारुणी भुवना, अवध्या, दारुणी ३७ शस्त्र से प्रहार...शस्त्र शस्त्र की चोट से उसको सुमाली ने १५३ उन्होंने...देखा । उन्होंने कुमारसिंहों को देखा। वे विनसे घायल घायल जिस नगरी का जैसा माम था ४८ जिसका...उसी के भनु यपूर्वक बड़ों के पास गये । उसी सार के अनुसार १७१ मुनिका...वैसे ही तुम मुनिका वह ऐसा कथन यथोद्दिष्ट बिना ५५ उन्होंने उसका उन्होंने ज्येष्ठ पुत्री का संशय पूरा हो रहा है और तुम Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001273
Book TitlePaumchariyam Part 2
Original Sutra AuthorVimalsuri
AuthorPunyavijay, Harman
PublisherPrakrit Granth Parishad
Publication Year2005
Total Pages406
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Literature, Story, & Jain Ramayan
File Size11 MB
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