SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 227
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ५५२ पउमचरियं [११४. ७ भणियं च सावएणं, सामिय! मुणिसुबयस्स वंसम्मि । संपइ चारणसमणो, इहागओ सुबओ नामं ॥ ७ ॥ सुणिऊण वयणमेयं, जणियमहाभावपुलइयसरीरो । रामो मुणिस्स पास, गओ बहुसुहडपरिकिण्णो ॥८॥ समणसहस्सपरिमियं, महामुणिं पेच्छिऊण पउमाभो । पणमइ ससंभममणो, तिक्खुत्तपयाहिणावत्तं ॥९॥ विजाहरा य मणुया, कुणन्ति परमं तु तत्थ महिमाणं । धय-तोरणमाईयं, बहुतूरसहस्ससद्दालं ॥ १० ॥ गमिऊण तत्थ रयणि, दिवसयरे उग्गए महाभागो। रामो भणइ मुणिवरं, भयवं ! इच्छामि पवइउं ॥ ११ ॥ अणुमन्निओ य गुरुणा, पयाहिणं कुणइ मुणिवरं रामो । उप्पन्नबोहिलाभो, संवेगपरायणो धीरो ॥ १२ ॥ छेत्तूण मोहपासं, संचुण्णेऊण नेहनियलाई । ताहे मुञ्चइ पउमो, मउडाइं भूसणवराई ॥ १३ ॥ काऊण तत्थ धीरो, उववासं कमलकोमलकरेहिं । उप्पाडइ निययसिरे, केसे वरकुसुम सुसुयन्धे ॥ १४ ॥ वामप्पासठियस्स उ, सह रयहरणेण दाउ सामइयं । पवाविओ य पउमो, सुबयनामेण समणेणं ॥ १५ ॥ पञ्चमहवयकलिओ, पञ्चसु समिईसु चेव आउत्तो । गुत्तीसु तीसु गुत्तो, बारसतवधारओ धीरो ॥ १६ ॥ मुक्का य कुसुमवुट्टी, देवेहि य दुन्दुही नहे पहया। पवणो य सुरहिगन्धो, पडुपडहरवो य संजणिओ ॥१७॥ मोत्तण रायलच्छि, निययपए ठाविउं सुयं जेढें । सत्तग्यो पबइओ, इन्दियसत्तू जिणिय सबे ॥१८!! राया बिहीसणो विय, सुग्गीवो नरवई नलो नीलो । चन्दनहो गम्भीरो, विराहिओ चेव दढसत्तो ।। १९ !! एए अन्ने य बहू, दणुइन्दा नरवई य पवइया । रामेण सह महप्पा, संखाए सोलस सहस्सा ॥ २० ॥ जुवईण सहस्साइं, तीसं सत्तत्तराई तदिवसं । पबज्जमुवगयाई, सिरिमइअजाएँ पासम्मि ।। २१ ।। काऊण य पवज, सर्टि वासाइं सुबयसयासे । तो कुणइ मुणिवरो सो, एकलविहारपरिकम्मं ॥ २२ ॥ समय यहाँ आये हैं। (७) यह कथन सुनकर अत्यन्त आनन्दके कारण पुलकित शरीर वाले तथा अनेक सुभटोंसे घिरे हुए राम मुनिके पास गये। (८) हजारों श्रमणोंसे घिरे हुए महामुनिको देखकर मनमें आदरयुक्त रामने उन्हें तीनबार प्रदक्षिणा देकर वन्दन किया। (९) वहाँ विद्याधरों और मनुष्योंने ध्वजा एवं तोरण आदिसे युक्त तथा नानाविधि हजारों वाद्योंसे ध्वनिमय ऐसा महान् उत्सव मनाया। (१०) वहाँ रात बिताकर सूर्यके उदय होने पर महाभाग रामने मुनिवरसे कहा कि, भगवन् ! मैं प्रव्रज्या लेना चाहता हूँ। (११) गुरुने अनुमति दी। सम्यग्दृष्टि, संवेगपरायण और धीर रामने मुनिवरको प्रदक्षिणा दी। (१२) तब मोहके पाशको छिन्न और स्नेहकी जंजीरोंको चूर-चूर करके रामने मुकुट आदि उत्तम आभूषणोंका त्याग किया। (१३) रामने उपवास करके वहाँ अपने सिर परसे उत्तम पुष्पोंके समान अतिसुगन्धित बालोंका कमलके समान कोमल हाथोंसे लोंच किया। (१५) बाई ओर स्थित रामको रजोहरणके साथ सामायिक देकर सुव्रत नामक श्रमणने दीक्षा दी। (१५) वे धीर राम पाँच महाव्रतोंसे युक्त, पाँच समितियोंसे सम्पन्न, तीन गुप्तियोंसे गुप्त तथा बारह प्रकारके तपके धारक हुए। (१६) देवोंने पुष्पोंकी वृष्टि की और आकाशमें दुन्दुभि बजाई। उन्होंने मीठी महकवाला पवन और नगारेका बड़ा भारी नाद पैदा किया। (१७) राजलक्ष्मीका त्याग करके और अपने पद पर ज्येष्ठ पुत्रको स्थापित करके शनने प्रव्रज्या ली और इन्द्रियोंके सब शत्रओंको जीत लिया। (१८) राजा विभीषण, सुग्रीव नृपति, नल, नील, चन्द्रनख, गम्भीर तथा बलवान् विराधितये तथा अन्य बहुतसे संख्यामें सोलह हजार महात्मा राक्षसेन्द्र और नरपति रामके साथ प्रव्रजित हुए। (१६-२०) उस दिन सैंतिस हजार युवतियोंने श्रीमती आर्याके पास दीक्षा ली। (२१) सुव्रत मुनिके पास साठ वर्षतक विहार करके वे मुनिवर १. सद्दाई-प्रत्य। २.०णो जाओ-प्रत्य। ३. मोहजालं.सं.-प्रत्य। ४. ०रे, वरकुसुमसुगंधिए केसे-प्रत्य० । ५. मसुहगंधे-प्रत्य० । ६. वामेण संठियस्सा, सह-प्रत्यः। ७. देवेहिं दु-प्रत्य०। ८. वरा य-प्रत्य० । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001273
Book TitlePaumchariyam Part 2
Original Sutra AuthorVimalsuri
AuthorPunyavijay, Harman
PublisherPrakrit Granth Parishad
Publication Year2005
Total Pages406
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Literature, Story, & Jain Ramayan
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy