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1. Shishupala 2. The entire horizon was beautified. 3. Of Krishna and Rukmini. 4. The auspicious groom. 5. The daughter. 6. - It was mutually pleasing.
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________________ द्वाचत्वारिंशः सर्गः कन्यादान कृतारम्भविदर्भेश्वरवाक्यतः । चेदीनामीश्वरः प्राप्तो वैदर्मपुरमादरात् ॥ ६५ ॥ बलेन महता तस्य चतुरङ्गेण रागिणा । मण्डिताशान्तरं जातं कुण्डिनं नगरं तदा ॥६६॥ इतश्चावसरज्ञेन नारदेन रहस्यरम् । चोदितो हरिरप्याप्तो गूढवृत्तः सहाग्रजः ॥ ६७ ॥ दत्त नागवलिः कन्या पुरोपवनवर्तिनी । पितृष्वस्त्रादिभिर्युक्ता माध्वेन निरीक्षिता ॥ ६८ ॥ श्रुतीन्धनसमृद्धोऽनुरागबन्धहुताशनः । अतिवृद्धिं तदा प्राप्तस्तयो दर्शनवायुना ॥ ६९ ॥ कृतोचितकथस्तत्र रुक्मिणीमाह माधवः । त्वदर्थमागतं भद्रे ! विद्धि मां हृदयस्थितम् ॥ ७० ॥ सत्यं यदि मयि प्रेम त्वया बद्धमनुत्तरम् । तदेहि रथमारोह मन्मनोरथपूरणि ॥ ७१ ॥ पितृष्वस्त्राऽपि सावाचि योऽतिमुक्तकभाषितः । स एव तव कल्याणि वरः पुण्यैरिहाहृतः ॥ ७२ ॥ यत्रापि पितरौ मद्रे ! दातारौ दुहितुर्मतौ । तत्राऽपि विधिपूर्वी तौ ततो ज्येष्ठो विधिर्गुरुः ॥ ७३॥ सानुरतां त्रपायुक्तां श्रीमत्यास्तनयां ततः । रथमारोपयद्दोर्भ्यामुत्क्षिप्यामीलितेक्षणः ॥७४॥ निर्वाह कस्तयोरासीत्तदान्योन्यसुखावहः । सर्वाङ्गीणस्तनुस्पर्शः प्रथमो मन्मथार्त्तयोः ॥ ७५ ॥ सुगन्धिमुखनिश्वासस्तयोरन्योन्ययोगतः । वास्यवासक्रमावस्थो वशीकरणतामगात् ॥७६॥ विमुखीकृतचैद्येन संमुखीकृतविष्णुना । विधिनैकेन रुक्मिण्यास्तत्कल्याणमनुष्ठितम् ॥७७॥ इधर कन्यादानकी तैयारी करनेवाले विदर्भेश्वर - राजा भीष्मके कहे अनुसार शिशुपाल आदर के साथ कुण्डिनपुर जा पहुंचा ||६५ || उस समय उसकी रागसे युक्त बहुत भारी चतुरंगिणी सेनासे कुण्डिनपुर के दिग्दिगन्त सुशोभित हो उठे ||६६ || इधर अवसरको जाननेवाले नारदने शीघ्र ही आकर एकान्तमें कृष्णको प्रेरित किया सो वे भी बड़े भाई बलदेवके साथ गुप्त रूप से कुण्डिनपुर आ पहुँचे || ६७ || रुक्मिणी नागदेवकी पूजा कर फुआ आदिके साथ नगरके बाह्य उद्यानमें पहले से ही खड़ी थी सो कृष्णने उसे अच्छी तरह देखा || ६८ || उन दोनोंकी जो अनुरागरूपी अग्नि एक दूसरे के श्रवणमात्र ईंधन से युक्त थी वह उस समय एक दूसरेको देखने रूप वासे अत्यन्त वृद्धिको प्राप्त हो गयी || ६९ || कृष्णने यथायोग्य चर्चा करनेके बाद वहाँ रुक्मिणीसे कहा कि 'हे भद्रे ! मैं तुम्हारे लिए ही आया हूँ और जो तुम्हारे हृदय में स्थित है वही मैं हूँ || ७० || यदि सचमुच ही तूने मुझमें अपना अनुपम प्रेम लगा रखा है तो हे मेरे मनोरथोंको पूर्ण करनेवाली प्रिये ! आओ रथपर सवार होओ' ||७१ || फुआने भी रुक्मिणीसे कहा कि हे कल्याणि ! अतिमुक्तक मुनिने जो तुम्हारा पति कहा था वही यह तुम्हारे पुण्यके द्वारा खींचकर यहाँ लाया गया है ||७२ || हे भद्रे ! जहाँ माता-पिता पुत्रोके देनेवाले माने गये हैं वहाँ वे कर्मोके अनुसार ही देनेवाले माने गये हैं इसलिए सबसे बड़ा गुरु कर्म ही है || ७३|| तदनन्तर जिनके नेत्र कुछ-कुछ निमीलित हो रहे थे ऐसे श्रीकृष्णने अनुराग और लज्जासे युक्त रुक्मिणीको अपनी दोनों भुजाओंसे उठाकर रथपर बैठा दिया || ७४|| कामकी व्यथासे पोड़ित उन दोनोंका जो सर्व प्रथम सर्वांगीण शरीरका स्पर्श हुआ था वह उन दोनोंके लिए परस्पर सुखका देनेवाला हुआ था || ७५ || उन दोनोंके मुखसे जो सुगन्धित श्वास निकल रहा था वह परस्पर मिलकर एक दूसरेको सुगन्धित कर रहा था तथा एक दूसरेको वश में करने के लिए वशीकरणमन्त्रपने को प्राप्त हो रहा था || ७६ || रुक्मिणीका वह कल्याण, शिशुपालको विमुख और कृष्णको सम्मुख करनेवाले एक विधि - पुराकृत कर्मके द्वारा ही किया गया था । भावार्थरुक्मिणीका जो कृष्ण के साथ संयोग हुआ था उसमें उसका पूर्वकृत कर्म ही प्रबल कारण था क्योंकि उसने पूर्वनिश्चित योजनाके साथ आये हुए शिशुपालको विमुख कर दिया था और अना ५०९ १. शिशुपालः 1 २ शोभितदिगन्तरालम् । ३. कृष्णरुक्मिण्योः । ४. कल्याणवरः म । ५. तनया म. 1 ६. - रासीदन्योन्य म. । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001271
Book TitleHarivanshpuran
Original Sutra AuthorJinsenacharya
AuthorPannalal Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2003
Total Pages1017
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Literature, & Story
File Size26 MB
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