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________________ एक सौ बियासी सूक्ति त्रिवेणी २८. अवच्छलत्ते य दंसणे हाणी । -बृह० भा० २७११ २९. अकसायं खु चरित्तं, कसायसहिओ न संजओ होइ । -बह० भा० २७१२ ३०. जो पुण जतणारहिओ, गुणो वि दोसायते तस्स । --बृह० भा० ३१८१ ३१. कुलं विणासेइ सयं पयाता, नदीव कूलं कुलडा उ नारी । --बृह० भा० ३२५१ ३२. अंधो कहिं कत्थइ देसियत्तं ? --बह० भा० ३२५३ ३३. वसुंधरेयं जह वीरभोज्जा । --बृह० भा० ३२५४ ३४. ण सुत्तमत्थं अतिरिच्च जाती। --बृह० भा० ३६२७ ३५. जस्सेव पभावुम्मिल्लिताई तं चेव यकतग्घाई । कुमुदाई अप्पसंभावियाइं चंदं उवहसंति ।। --बृह. भा० ३६४२ ३६. जहा जहा अप्पतरो से जोगो, तहा तहा अप्पतरो से बंधो। निरुद्धजोगिस्स व से ण होति, __अछिद्दपोतस्स व अंबुणाघे ॥ --बृह० भा० ३९२६ ३७. आहच्च हिंसा समितस्स जा तू, सा दव्वतो होति ण भावतो उ । भावेण हिंसा तु असंजतस्स, ___ जे वा वि सत्ते ण सदा वधेति ॥ --बृह. भा० ३९३३ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001258
Book TitleSukti Triveni
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1988
Total Pages265
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Literature, Canon, & Agam
File Size3 MB
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