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________________ भाष्यसाहित्य की सूक्तियाँ एक सौ इक्यासी १८. जो कठोरहृदय दूसरे को पीडा से प्रकंपमान देखकर भी प्रकम्पित नहीं होता, वह निरनुकंप ( अनुकंपा रहित ) कहलाता है। चूंकि अनुकंपा का अर्थ ही है - काँपते हुए को देखकर कंपित होना । १९. जो अल्पाहारी होता है, उसकी इंद्रियां विषयभोग की ओर नहीं दौडतीं, तप का प्रसंग आने पर भी वह क्लांत नहीं होता और न ही सरस भोजन में आसक्त होता है । २०. वह कौन-सा कठिन कार्य है, जिसे धैर्यवान् व्यक्ति संपन्न नहीं कर सकता ? २१. दूध पाने की कोई कितनी ही तीव्र आकांक्षा क्यों न रखे, पर बांझ गाय से कभी दूध नहीं मिल सकता । २२. गुफा बचपन में सिंह- शिशु की रक्षा करती है, अतः तभी तक उसकी उपयोगिता है । जब सिंह तरुण हो गया, तो फिर उसके लिए गुफा का क्या प्रयोजन है ? २३. पुरुषार्थहीन व्यक्ति के लिए ऐसा कोई कार्य नहीं, जो कि निर्दोष हो, अर्थात् वह प्रत्येक कार्य में कुछ-न-कुछ दोष निकालता ही रहता है । २४. हाथ में नागदमनी औषधि के होते हुए भी क्या सर्प पकडने वाला गारुड़ी दुष्ट सर्प से नहीं छला जाता है, काट लिया नहीं जाता है ? ( साधक को भी तप आदि पर विश्वस्त होकर नहीं बैठ जाना चाहिए । हर क्षण विकारों से सतर्क रहने की आवश्यकता है ।) २५. गृहस्वामी के हाथ में जल से भरा घडा होते हुए भी क्या आग लगने पर घर नहीं जल जाता है ? अवश्य जल जाता है । क्योंकि सब ओर अत्यन्त प्रदीप्त हुआ दावानल एक घड़े के जल से बुझ नहीं सकता ! ( जितना महान् साध्य हो उतना ही महान् साधन होना चाहिए । ) २६. आम खाने से जिसे व्याधि होती हो, वह आम की छाया से भी बच कर चलता है । २७. वस्त्र के सैकड़ों आवरणों (प्रावरणों) के द्वारा भी प्रभात के स्वर्णिम आलोक को ढका नहीं जा सकता । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001258
Book TitleSukti Triveni
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1988
Total Pages265
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Literature, Canon, & Agam
File Size3 MB
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