________________
शूली के पथ पर
सेठ सुदर्शन एक मात्र,
परिषद् में बैठा हँसता था। आँखों में तेज चमकता था,
मुखविधु पर नूर बरसता था । "भूपति ! मुझ से अपराधी को,
यह क्या पामर दंड दिया । उत्तेजित हो तुमने कुछ भी,
नहीं बुद्धि से काम लिया । प्राणदंड की खातिर तो मैं,
____ था पहले से ही राजी । और दीजिए दंड कठिन कुछ,
क्योंकि सेठ अति है पाजी । मृत्यु नहीं है, यह तो मुझमें,
नूतन जीवन डालेगी । पाप-कालिमा जन्म-जन्म की,
मल-मल कर धो डालेगी । दुनिया कुछ भी समझे मुझको,
इससे क्या लेना - देना ? नश्वर जग में सार यही है,
जीवन सफल बना लेना ॥ मैं क्या प्रभो ! मरूंगा आखिर,
मृत्यु अनृत की ही होगी । भौतिक बल पर नियत अन्त में,
विजय सत्य की ही होगी । देलूँगा वह शूली कैसे,
मुझको मार गिराएगी ।
७४
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org