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धर्म-वीर सुदर्शन
प्राणों का मोह नहीं है, मौत का कुछ भी खौफ नहीं है,
___ चलाएँ सिर तलवार ! धर्म का रग-रग रंग समाया, मिटेगा हर्गिज नहीं मिटाया,
अमर है दृढ़ हुंकार !
राजा भड़का "अरे नीच !
अब भी न गई तव मक्कारी । मन में अब भी मचल रही है,
शेखी - खोरी हत्यारी । सच्चा है, तो क्यों न साफ,
सब भेद खोल बतलाता है ? टेढ़ी ही बातें करता है,
. सीधे मार्ग न आता है। अन्तकाल है निकट मृत्यु,
तव मस्तक पर मँडराती है। बुद्धि भ्रष्ट हो गई सर्वथा,
लज्जा तनिक न आती है ॥ वीर सैनिको ! ले जाओ,
झट शूली दो, मरवा डालो । और लाश को खंड-खंड कर,
कुत्तों से नुचवा डालो ॥" शूली का आदेश सुना,
तो सन्नाटा सब ओर हुआ । चित्रलिखित से हुए सभी जन,
शोक-सिन्धु का दौर हुआ ।
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