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शूली के पथ पर
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आप स्वयं हैं, समझदार बस,
और कहो क्या
समझाऊँ ?
जैसी भी है, जो कुछ भी है,
बात गुप्त ही दण्ड दीजिए जो भी दिल में,
आए कसर न
रहने दें ।
रहने दें
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रहस्य-भरी घटना है,
बताऊँ क्या सरकार ! कौन है कहता मुझको धर्मी मैं तो बड़ा कुकर्मी;
घोर कलिमल-भंडार ! अन्तर-शोधन में मन लाया, मुझ से बुरा न कोई पाया;
. सभी खोजा संसार ! तदपि न ऐसा पतित हिया है, जैसा तुमने समझ लिया है;
पाप का ही अवतार ! स्वर्ग से देवी भी चल आए, तो भी चित्त न डिगने पाए,
शील अविचल अविकार ! सत्य का भेद स्वयं मैं खोलूँ, होकर दीन हीन-सा बोलूँ, .
नहीं मुझको स्वीकार ! सत्य का दिनकर खुद चमकेगा, अंत में तेज अटल दमकेगा,
झूठ का परदा फार!
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