SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 95
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ शूली के पथ पर - आप स्वयं हैं, समझदार बस, और कहो क्या समझाऊँ ? जैसी भी है, जो कुछ भी है, बात गुप्त ही दण्ड दीजिए जो भी दिल में, आए कसर न रहने दें । रहने दें ॥ रहस्य-भरी घटना है, बताऊँ क्या सरकार ! कौन है कहता मुझको धर्मी मैं तो बड़ा कुकर्मी; घोर कलिमल-भंडार ! अन्तर-शोधन में मन लाया, मुझ से बुरा न कोई पाया; . सभी खोजा संसार ! तदपि न ऐसा पतित हिया है, जैसा तुमने समझ लिया है; पाप का ही अवतार ! स्वर्ग से देवी भी चल आए, तो भी चित्त न डिगने पाए, शील अविचल अविकार ! सत्य का भेद स्वयं मैं खोलूँ, होकर दीन हीन-सा बोलूँ, . नहीं मुझको स्वीकार ! सत्य का दिनकर खुद चमकेगा, अंत में तेज अटल दमकेगा, झूठ का परदा फार! - - ७२ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001218
Book TitleDharmavir Sudarshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1995
Total Pages200
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size7 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy