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धर्म-वीर सुदर्शन हाथों में ले नग्न खड्ग,
बस मार-मार करते धाए ॥ अन्तःपुर की रक्षक सेना ने,
भी फौरन फॅच किया । राज-महल पर पलक मारते.
___ चहुँ-दिशि घेरा डाल दिया ।। सेनापति कुछ सैनिक लेकर,
शीघ्र महल में आया है। चौंक उठा, सहसा, जब बैठा,
सेठ सुदर्शन पाया है ॥ क्या करता, कर्तव्यपाश में,
फँसा हुआ था बेचारा । रानी की आज्ञा से झटपट,
लौह-निगड़ में कस डारा ॥ राजा को भी खबर लगी,
तो दौड़ बाग से झट आया । क्या कुछ कैसे हुआ ?
धूर्त रानी ने यों सब बतलाया ॥ "प्राणनाथ ! क्या पूछो हो,
अति भीषण अत्याचार हुआ । शील-धर्म से च्युत करने के,
लिए दुष्ट तैयार हुआ । मैंने जो धिक्कारा, तो बस,
जोर - जब्र करना चाहा । अंग नोंच कर, वस्त्र फाड़ कर,
मुझे नग्न करना चाहा ॥
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