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शूली के पथ पर
बोली सेठ सुदर्शन से –“ले अब, कैसा
हाल
मानी बात नहीं अब उसका, कैसा मजा
देख तमाशा मेरा, जौहर,
अपना क्या
रे जालिम ! मक्कार !! तुझे,
मेरे एक हुक्म से तेरा,
दिखलाती हूँ ?
अब शूली पर चढ़वाती हूँ ॥
बनाती हूँ ?
चखाती हूँ ?
कुछ का कुछ हो जाएगा ।
तड़पेगा, सिसकेगा, तन से, प्राण पृथक हो
बाल बिखेरे, चीवर फाड़े, विकृत रूप स्थान-स्थान पर अंग नोंच कर, शोणित सा
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द्वारपाल सब क्रंदन सुनकर,
सहसा
जाएगा ॥
बनाया
झलकाया
आँखों में आँसू की धारा,
बही जोर से चीख उठी । आस-पास के जनप्रदेश में,
रोदन की ध्वनि गूँज उठी ॥
" दौड़ो -दौड़ो, आज महल में,
कौन दुष्ट घुस आया है ? अकस्मात् किस पापी ने,
सोती को मुझे
दबाया है ।।"
है ।
है ॥
अति ही घबराए ।
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