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अग्नि परीक्षा
सुदर्शन ऐसी बातों में, कभी हर्गिज न आएगा; खुशी से अपना यह सर, सत्य के पथ पर कटाएगा । गृहांगण में अमित लक्ष्मी, सदा अठखेलियाँ करती, तुम्हारे तुच्छ वैभव पर भला क्यों कर लुभाएगा । जड़ें इस राज्य की गूँगी प्रजा के खून से तर हैं, घृणा है स्वप्न तक में ध्यान लेने का लाएगा | मिले यदि इन्द्र का आसन पदच्युत धर्म से होकर, न लेगा, भीख दर-दर की भले ही माँग खाएगा । डराती क्या है पगली ! मौत का डर तू दिखा मुझको, खुशी से जेरे-खंजर शीश झट अपना झुकाएगा । न कुछ जीवन की परवा है, न कुछ मरने का डर दिल में, मुसीबत लाख झेलेगा, मगर निज प्रण निभाएगा । तुझे करना हो जो करले, खुली है छूट तेरे को, अटल निज सत्य की महिमा सुदर्शन भी दिखाएगा ।
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