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________________ धर्म-वीर सुदर्शन - स्वतंत्र शासन सदा चलाना, अखंड सब पै स्वराज होगा। समझलें अब भी न बिगड़ा कुछ है, विनम्रता से कहती हूँ तुमसे; अगर न माने तो देख लेना, ठिकाने जल्दी मिजाज होगा । लगेगा पल भर, चलेगा खंजर, गिरेगा मस्तक जमी पै कट कर; तड़फ-तड़प कर बनेगा ठंडा, ..यह जालिमाना इलाज होगा। न काम आएगा धर्म तेरा, कुटुम्ब होगा विनष्ट तेरा, क्यों खोता नाहक अमूल्य जीवन, सदा न हर्गिज यह साज होगा। सेठ हृदय पर इन बातों का, हुआ जरा भी नहीं असर । अभया का निकला यह भी, जग - मोहनकारी अस्त्र लचर ॥ धर्मवीर को कोई भी, पथ भ्रष्ट नहीं कर सकता है। सागर का गंभीर रूप क्या, झंझानिल हर सकता है। बोला निःसंकोच जरा भी, ___ नहीं हृदय में सकुचाया । साफ-साफ शब्दों में अपना, ... दृढ़ निश्चय यह बतलाया ॥ . ६३ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001218
Book TitleDharmavir Sudarshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1995
Total Pages200
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size7 MB
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