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धर्म-वीर सुदर्शन
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स्वतंत्र शासन सदा चलाना,
अखंड सब पै स्वराज होगा। समझलें अब भी न बिगड़ा कुछ है,
विनम्रता से कहती हूँ तुमसे; अगर न माने तो देख लेना,
ठिकाने जल्दी मिजाज होगा । लगेगा पल भर, चलेगा खंजर,
गिरेगा मस्तक जमी पै कट कर; तड़फ-तड़प कर बनेगा ठंडा,
..यह जालिमाना इलाज होगा। न काम आएगा धर्म तेरा,
कुटुम्ब होगा विनष्ट तेरा, क्यों खोता नाहक अमूल्य जीवन,
सदा न हर्गिज यह साज होगा।
सेठ हृदय पर इन बातों का,
हुआ जरा भी नहीं असर । अभया का निकला यह भी,
जग - मोहनकारी अस्त्र लचर ॥ धर्मवीर को कोई भी,
पथ भ्रष्ट नहीं कर सकता है। सागर का गंभीर रूप क्या,
झंझानिल हर सकता है। बोला निःसंकोच जरा भी,
___ नहीं हृदय में सकुचाया । साफ-साफ शब्दों में अपना,
... दृढ़ निश्चय यह बतलाया ॥ .
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