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अग्नि-परीक्षा
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जगत-विमोहन अस्त्र आखिरी,
__अब इक और चला देखू । वैभव के अति सुखद प्रलोभन,
__का नव - जाल रचा देखू ॥" "बैरागी जी रहने दीजे
बस विराग की ये बातें । धर्म-धूर्त तुम जैसों की,
मैं समझू हूँ सारी घातें ॥ अन्दर ज्वाला भड़क रही है,
ऊपर धर्म दिखावा है । क्या लोगे इन बातों में ?
सब झूठा यह बहकावा है ॥"
न तानें ज्यादा, कृपा करें अब,
बड़ा तुम्हारा लिहाज होगा; अगरचे राजी करेंगे मुझको,
सफल तुम्हारा भी काज होगा । समग्र चंपा का राज्य वैभव,
तुम्हारे चरणों में आ झुकेगा; न देर होगी नरेन्द्रता का,
तुम्हारे मस्तक पै ताज होगा । यह महल मन्दिर, यह फौज लश्कर,
यह स्वर्ण-सिंहासन राजशाही; तुम्हारी मुट्ठी में होगा सब कुछ,
सुरेन्द्र-सा सौख्य-समाज होगा। जुटेंगे सारे सुखों के साधन,
मजे में गुजरेगी जिन्दगी सब;
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