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________________ अग्नि-परीक्षा - जगत-विमोहन अस्त्र आखिरी, __अब इक और चला देखू । वैभव के अति सुखद प्रलोभन, __का नव - जाल रचा देखू ॥" "बैरागी जी रहने दीजे बस विराग की ये बातें । धर्म-धूर्त तुम जैसों की, मैं समझू हूँ सारी घातें ॥ अन्दर ज्वाला भड़क रही है, ऊपर धर्म दिखावा है । क्या लोगे इन बातों में ? सब झूठा यह बहकावा है ॥" न तानें ज्यादा, कृपा करें अब, बड़ा तुम्हारा लिहाज होगा; अगरचे राजी करेंगे मुझको, सफल तुम्हारा भी काज होगा । समग्र चंपा का राज्य वैभव, तुम्हारे चरणों में आ झुकेगा; न देर होगी नरेन्द्रता का, तुम्हारे मस्तक पै ताज होगा । यह महल मन्दिर, यह फौज लश्कर, यह स्वर्ण-सिंहासन राजशाही; तुम्हारी मुट्ठी में होगा सब कुछ, सुरेन्द्र-सा सौख्य-समाज होगा। जुटेंगे सारे सुखों के साधन, मजे में गुजरेगी जिन्दगी सब; ६२ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001218
Book TitleDharmavir Sudarshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1995
Total Pages200
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size7 MB
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