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________________ धर्म-वीर सुदर्शन ले डूबेगा अगम भँवर में, ऐसा लगा बुरा चसका । क्यों तू जवानी में, हुई है दिवानी; __जीवन है यह दिन दश का । रंगरेलियाँ धरी ही रहेंगी; काल अचानक आ धसका । दुर्गति में जब कष्ट मिलेंगे; नशा उतर जाय नस-नस का । राजवंश की तू कुल-गृहिणी; दाग लगा मत अपयश का । संयम का सत्पथ अपना ले; मनुष्य जन्म फिर नहीं वश का । सेठ सुदर्शन से रानी ने, रूखा उत्तर पाया है। अभिलाषा का चिर पोषित कल्पित, कमल पुष्प कुम्हलाया है ॥ "मैं गलती से जिसे मृदुल, मिट्टी का ढेला समझी थी । वज्र-शिला-सा निकलेगा वह, नहीं जरा भी समझी थी। रूपमाधुरी पर ललचाए, ___ सेठ न ऐसा कामी है । पक्का है निज प्रण पर बिल्कुल, नहीं भोग-पथ गामी है ॥ - - Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001218
Book TitleDharmavir Sudarshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1995
Total Pages200
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size7 MB
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