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अग्नि-परीक्षा
भोगो भोग प्रेम से आज सेठ जी नई जवानी है, नई जवानी है, सेठ जी नई जवानी है। सूरत मोहन-गारी प्यारी, नयन समानी है, तन मन धन सब वारूँ तुझ पर तू दिल-जानी है। दासी श्रीचरणों की अभया, नहीं बिगानी है, रूप - माधुरी-मुग्ध तुम्हारे हाथ-बिकानी है। तड़फत हूँ दिन रैन मछलियाँ ज्यों बिन पानी हैं, . आग बिरह की सुलग रही, वह आज बुझानी है । आँख खोल कर देखो कैसी छवि लासानी है, रूप - गर्विता इन्द्राणी भी देख लजानी है। स्वर्ग नरक के भ्रम में दुनियाँ व्यर्थ भुलानी है, झूठा धुंधपसारा न कुछ आनी-जानी है। यौवन-वय में जप तप करना शक्ति गँवानी है, कोमल कंचन - वर्णी काया व्यर्थ सुखानी है । भोगो भोग मजे से जब तक यह जिन्दगानी है, आखिर पाँच तत्व की पुतली गल सड़ जानी है। अवसर हाथ लगा खो देना, अति नादानी है. दया कीजिए नाथ ! प्रेम की गाँठ जुड़ानी है ।
मौन प्रतिज्ञा पूर्ण हुई,
अब ध्यान सेठ ने खोला है । रानी समझी काम बना,
दृढ़ आसन कुछ तो डोला है । लेकिन सेठ सुदर्शन मन पर,
नहीं विकृति की रेखा थी । निष्पकंप मन्दराचल-सम,
डिगने की कुछ न अपेक्षा थी ॥
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